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________________ ( ६७ ) प्राणियोका किसी दूरवर्ती देवताके प्रसन्नार्थ घात करना न्याय व विज्ञान दोनों में से किसीके भी प्राश्रय नहीं है । अन्य देवताओंकी ओर ध्यान करने पर युगल प्रश्विनी कुमार स्वांनकी दो नाडियों, क्रमानुसार इड़ा व पिङ्गला के रूप रू प्रतीत होते हैं ) उनके बारेमें यह माना गया है कि वह वरावर चलते होते हैं। कारण कि प्राणका स्वभाव सदैव चलते रहने का है । और वह वैद्य रूपमें भी माने गये हैं इस कारण से कि स्वासीच्छ्वास नाड़ियोके अपवित्रताको दूरकर देता है और इस कारणसे मो कि योगियो द्वारा यह बात मानी गई है कि मनुष्य के शरीर के बहुत से रोग जीवनकी मुख्य शक्ति अर्थात् प्राणका जिसका संबंध स्वांस से बहुत घनिष्ट : उचित प्रयोग करनेसे दूर हो जाते हैं । स धारण रूपमे स्वांसको व्यक्तिगत वायुके प्रतिरूप में जिसका एक नाम अनिल ( स्वांस ) है वाधा है | परन्तु देवताओं में सबसे अधिक मुख्य ३३ है जिनमें ११ रुद्र ८ वसु १२ आदित्य, इन्द्र और प्रजापति शामिल है । , रुद्र जीवन के उन कर्तव्यों के रूपान्तर है जिनका रुक जाना मृत्यु है । वह रुद्र ( रुद्र यानो रोना मृत्यु समय रोदन होने के कारण कहलाते हैं, इसलिये कि मृतक पुरुषके मित्र और कुटुम्बी जन उसकी मृत्यु पर आंसू बहाते हुये देखे जाते हैं । चह आत्माकी भिन्न २ जीवन शक्तियों को सूचित करते हैं । ८ वसु अनुमानतः शरीरके ८ मुख्य भागोंके जो अङ्ग कहलाने हैं कर्तव्योंके चिन्ह हैं। कुछ लेखकोंके मतानुसार ८ चसुओंका
SR No.010829
Book TitleSanatan Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherChampat Rai Jain
Publication Year1924
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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