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________________ (६१) २-"वह लोग जो यह शिक्षा, २-"जब वे घोडेके आगे जो देते हैं कि केपल सत कर्मों खलिस सोवरणके आभू. से उपार्मित धन ही संग्रह पणोंले विभूपित है वलिको और व्यय करना चाहिये मजबूत पकड़े हुये ले चलते और वह जो बुद्धिमत्ता है तव चितला (धन्वेदार) प्रवेश हो चुके हैं जो दूसरों वकरा अगाही चलते से पदार्थ विज्ञानके विषय वक्त मिमियाता हुआ में शास्त्रार्थ करने में और चलता है, वह इन्द्र और मूर्खाको सुधारने में निपुण पूपणके प्रिय मार्ग पर है, केवल वे और ऐसे ही चलता है। शक्ति और बनके रसको - शासनार्थ पीते हैं। ३--"उपकारी गुणों से पूर्ण 1-"वह बकरा जो कि समस्त बकरी दूध देती है देवताघोंके लिये अर्पित है पूपणके भागके तौर पर जो घाडोंके वास्ते प्रथम तेज घोड़े के साथ एक पुष्टिकारक मोजन निकाला जाता है है; सर्वोत्तम अनाज कारण कि त्वस्त्रि स्वत. उसी समय उपयोगी ही मन भावन भेटको जो होता है जब कि चतुर घोडेके साथ लाई जाती है रसोइया द्वारा भोज्य कीर्ति प्रदान करती है।" वस्तुओंके गुण संबन्धी ।
SR No.010829
Book TitleSanatan Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherChampat Rai Jain
Publication Year1924
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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