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________________ ( ४ ) थोड़े ही पश्चात्का काम सावित कर रही है तो वह अपने उस त्साह करेगी जब तक कि वे आत्माकी जो अपने स्वभावसे सर्वज्ञ है, जैसा कि " की आफ नॉलेज" और "साइन्स आफ थोट" में पूर्ण रीतिसे सावित किया गया हैं शक्तियों और गुणों स्वरूपका यथोचित ज्ञान प्राप्त न कर लें | इस सम्पूर्ण ज्ञानकी शक्तिको स्वयं पूरे तौरसे अनुभव में प्रगट करने के लिये किसी वस्तुको बाहर से प्राप्त करनेकी आवश्यकता नहीं है, किन्तु केवल उस बाह्य पुगलके अंशको जो आत्मा के साथ लगा हुआ है, दूर करनेकी है । इस प्रकार जितना ही सादा ( वैराग्यरूप ) जीवन होगा, उतने ही अधिक उच प्रकार के ज्ञानकी प्राप्तिके अवसर मिलेंगे । इसलिये हमारे पूर्वज जिनका जीवन बहुत सादा था और जिनके विचार बहुत उम्र ये सची बुद्धिमत्ता के प्राप्त करने के हेनु उससे अधिक योग्य थे जैसा उनकी वर्तमान समय दूरको सतान ख्याल करती है। यह बात कि वास्तवमें भी यही हाल है, प्राचीन कथाओं ( पुराणों आदिसे ) सिद्ध है, जिसका अनुमोदन सामान्य रूपसे धर्मसबंधी विचारों और विशेष रूपले जनविद्वातकी अद्भुत पूर्णता की आंतरिक साक्षीसे होता है । इस प्रकार विवित होगा कि अपने अधिकतर वैज्ञानिक गुणोंसे अपने पूर्वजों को चकाचौंध कर देनेकी बजाय हमने उनको छोदी हुई शिक्षानिधिको भी बहुत कुछ नष्ट कर दिया है और अब गर्व करनेके लिये हमारे पास परिवर्तन शील फैशनों और कार्य होन पौद्गलिकता के अतिरिक्त नहीं है । निः सदेह यह उन्नति और विकाशके मार्गकी ओर चलना नहीं हैं परंतु इसके विपरीत पथपर मग धरना है । ४
SR No.010829
Book TitleSanatan Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherChampat Rai Jain
Publication Year1924
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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