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________________ भूमिका। प्रिय पाठकगण ! यह हमारे परम सौभाग्यका अवसर है कि इस ऐतिहासिक और शास्त्रीय उद्यानके अपूर्व सुमनको लेकर मैं आपके समत आज उपस्थित होताई। यद्यपि में न कोई प्रसिद्ध लेखक अथवा विद्वान ही हूं, तथापि इस शास्त्रीय उद्यान में एक सुमनकी सुचारु गन्धने मेरे हृदयमें एक अभिनव उल्लास उत्पन्न किया, यह कृति उजीकी फल स्वरूप है। मैंने इसे उस उद्यानसे चुनकर धर्म के प्रशस्त उद्यानको सुसजित करके इसको शोमा वृद्धि करने के लिये प्रयत्न किया है। हां, सुसजित करने की प्रशंसनीय प्रणाली एक दूसरे विण्यात एवं स्वनामधन्य विद्वान् लेखककी है। केवल कुशल कारागरकी कुदरती करामातकी खूबी दिखानेवाला में आशा है, इस सुमनके सौरभसे शास्त्रीय उद्याभके रसिया भौरोंका मन यथेष्ट लग्र मुग्ध होगा। इस सुमनके नव विकातसे जो नूतन सुगंधि हर ओर फैलेगी, विश्वास है कि उसका विनाश और सत्य तथा अहिंसा का यथेच्छ प्रचार होगा और भारत-माताकी पुनीत आत्माको दिव्य ज्योति भ्रम और शंकाकी अधियारी दूर कर देगी। मैं नहीं समझता किस सुमनको नया रूप रंग टेनेमें मुझे कहा सक सफलता है।
SR No.010829
Book TitleSanatan Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherChampat Rai Jain
Publication Year1924
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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