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________________ है कि यानी इस शासनिक निक रचनेवालेने अपने प्रापको इन शिनाक गानिक ढग पर वन करने के योग्य नहीं समझा या कम वजन यह कि उन्को बिगनिक दंग पर खोजत्रने की इच्चा या वावश्यकता न यो इम नियइ नाविन है कि उनने इस सिद्धांतको किसी और जरियेले प्रान किया था, जो जैन मत बाहर दुनिया में कहीं नहीं मिलता है। यहां यह बात भी कहने योग्य है कि हिन्दू मत सव जैन म और उसके नायक भगवान श्री ऋषमठेवजीको जिनने उन्होंने विन्गुका अवतार माना है, प्राचीनताको न्वीकार दिया है और कम उम्र विन्द्ध नहीं कहा गहपुरा और निपुगण में श्री ऋषभदेवजीना बरीन है जिन्होंने उनके ऐतिहालेर व्यक्ति होनेको सरकी लीमाझे पर पहुंचा दिया है और जो उनकी मा नदेवी और उन पुर भरना, जिन के नाम पर हिन्दुलान भारतवर्ष नन्ताया. वर्णन करते हैं। भागवत पुगग भी पर नायरका वर्णन है और उनको जैन नतका संस्थापक मान है ! इस अन्तिम उल्लिखित पुगाके अनुसार अपमन्यजी विष्णु के अवतारामने नर्वे अवतार थे, और वामन, राम, कृष्ण, बुद्ध से, जिनको भी विप्राका अवतार माना है, पहिले दुरभव कि गमन अवतारका जो सिलसिन्नं पन्द्रहां है, ऋग्वेदमें स्ट रीतिने वर्णन है इस लिये. यह नतीजा निकलता है कि वह उस मन्त्रले जिसमें उनका वर्णन है. पहिले हुए होंगे और
SR No.010829
Book TitleSanatan Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherChampat Rai Jain
Publication Year1924
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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