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________________ ( १३ ) इसके बिलकुल विरुद्ध है क्योंकि यदि हम इस ख्यालको दिलसे निकाल दें कि वेद ईश्वरकृत हैं और किसी प्रकार उनके अलंकृत मंत्रोंमें छिपे हुये सिद्धान्तों को समझ सके तो हम हिन्दू धर्मकी गुम रहस्यमयी शिक्षाको आसानीसे एक बाहरी निकास से निकलते हुये देख सके हैं यह वात पहिले ही सिद्ध हो चुकी है कि न तो निर्वाणका महान उद्देश और न भावागवनका सिद्धान्त जिसमें कर्मका नियम भी शामिल है प्रारम्भिक हिंदू शास्त्रों मे उनको स्थूल दृष्टिसे पढ़ने पर पाये जाते हैं । और यदि यह नियम वेदोंके कथानकोंमेंसे निकाले भी जा सकें तो भी उनका वर्णन वेदोंमें उस वैज्ञानिक ढंग पर नहीं मिलता है जैसा कि जैनशास्त्रों में । इस लिहाज से प्रारम्भका हिन्दू मत वौद्ध मतसे सदृशता रखता है जो आवागमनके सिद्धान्त और कर्म के फ़िल्सफेके उसूलको तो मानता है परन्तु बंध और पुनर्जन्मका वर्णन उस वैज्ञानिक तरह पर नहीं करता है जिस प्रकार कि जैनमतमें किया गया है। इन वातोंसे जो अर्थ निकलता है वह प्रत्यक्ष है और स्पष्टतया उसका भाव यह ठहरता है कि कर्म, व्यावागमन और मोक्षके सिद्धान्त हिन्दुओं या वौद्ध दार्शनिकोंने नहीं दर्यात किये थे और न वह उनको किसी सर्वन यानी सर्वज्ञानी गुरु या ईश्वरके द्वारा प्राप्त हुये थे । इस युक्ति ( विषय ) की श्रेष्ठताको समझनेके लिये यह याद रखना आवश्यक है कि कर्म सिद्धान्त रुहानी फिल्सफे (अध्यामिलान) का एक बहुत ठीक और वैज्ञानिक प्रकाश है और
SR No.010829
Book TitleSanatan Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherChampat Rai Jain
Publication Year1924
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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