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________________ (७) ताका अधिक अंश है, अधिक प्राचीन होना चाहिये । इसी वात को मानकर यह कहा जाता है कि प्राचीन धर्मके विरोध जैन धर्म स्थापित हुआ और इस लिये इसको मूल धर्म (प्राचीन हिन्दु धर्म) की उद्दण्ड पुत्री समझना चाहिये। जिससे उसकी व. हुत गहरी सदृशता है। दुर्भाग्यवश इस संबंध कोई वाह्य प्रमाण उपलब्ध नहीं क्योंकि न तो कोई प्राचीन स्मारक ही और न कोई ऐतिहासिक चिन्ह ही मिलते है जो इस प्रश्न पर प्रकाश डाल सके । इस बातका निर्णय केवल स्वयम दोनों धर्माके शा. स्त्रोंको प्रातरिक साक्षोसे, विना किसी बाह्य महायनाके ही का रना है। अतः हम दोनों धर्मोक सिद्धान्तोंका साथ साथ अध्य. यन करेंगे जिससे हम यह जान सके कि दोनोंमें अधिक प्राचीन कौन है ? प्रथम हिन्दू धर्मके ऊपर दृष्टि डालते हुये उस शास्त्रों में वेद, ब्राह्मण, उपनिपद और पुराण शामिल हैं। इनमें वेद सव से प्राचीन हैं। दूसरा नम्बर प्राचीनतामें ब्राह्मण शास्त्रोंका है। उसके पश्चात् क्रमसे उपनिपदोंका प्रौः फिर सबसे अन्तमें पुराणोका है। सव वेद भी एक ही समयके निर्मित नहीं हैं। ऋग्वेद सबसे प्राचीन है। इस प्रकार हिन्दू मत उन धर्मों से है जो समय समय पर वृद्धि व उन्नतिको प्राप्त होते रहे हैं। ___ यह वात स्वयं अपनी साक्षी है, और इसस यह परिणाम * जैन पुराण वास्तवमें जैनमतकी असीम प्राचीनताको सिद्ध करते हैं, लेकिन चूंकि वर्तमान इतिहासवेत्ता सिवाय इतिहासिक प्रन्योंके आर प्रन्थों पर अविश्वासके साथ दृष्टिपात करता है इस कारण हम इस लेख में उनका प्रमाण नहीं देंगे। -
SR No.010829
Book TitleSanatan Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherChampat Rai Jain
Publication Year1924
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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