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________________ श्रीवीतरागाय नमः । जैनधर्मकी प्राचीनता। श्रीतीर्थकरप्रणीत मत अथवा जैनधर्मको उत्पत्तिका विषय पूर्वी भापायोके विद्वानों के लिये जिन्होंने इसके विकाश प्रति अनेक मनमानी कल्पनाये रची हैं, भ्रम और भूलका एक मुख्य कारण रहा है। कुछ समय पूर्व यह अनुमान किया जाता था कि माकी छठी शताब्दी में जैन धर्म बौद्ध धर्मको शाग्वासपने प्रस्फुटित हुआ था और भारतीय इनिहासमें भी जो हमारे स्कूलों में कुछ समय पूर्वतक पढ़ाया जाता था यही शिक्षा दीजानी थी । परन्तु नई खोजने यह पूर्णतया प्रमाणिन कर दिया है कि “यह (जैन) धर्म महामा बुद्ध से कम से कम तीन ३०० सौ वर्ष पूर्व विद्यमान था और आधुनिक पूर्वी भापामापी विद्वान अब इस बात पर सहमत हो गये है कि २३ तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ स्वामी कोई काल्पनिक व्यक्ति न थे यक्कि एक ऐतिहासिक पुरुष हुये हैं।" इस पाप्याके मस्य होने के
SR No.010829
Book TitleSanatan Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChampat Rai Jain
PublisherChampat Rai Jain
Publication Year1924
Total Pages102
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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