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________________ निरतिवाद ना बढ़ सकता है जब मनुष्य सदाचारी और जन सेवा के मार्ग मे इनका उपयोग किया जाय । निस्वार्थ-सेवी हो। निरतिवाद न तो इनका विरोधी है न इन्हीं मे आप एक अधिकारी के सामने एक सदाचारी कर्तव्य की इतिश्री समझता है । जनसेवक की उपेक्षा करते हो वैभव और बलके उपसंहार सामने सिर झुकाते हो और प्रेम की पर्वाह नही करत तो इसमे सन्देह नहीं कि आप जगत को निरतिवाद का पहिले विस्तार से आर्थिक रूप बताया गया था पर निरतिवाद के क्षेत्र मे नरक की तरफ लेजा रहे हो। तो धर्म, समाज, राजनीति [राष्ट्रीय और अन्तएक सज्जन ने यह सूचित किया है कि सत्य र्राष्ट्रीय ] सभी शामिल हो सकते है इसलिये इक्कीस और बहादुरी को भी इस श्रेणी में ले लेना चाहिये। परन्तु सदाचार मे सत्य का समावेश होजाता है । सन्देशो का निरतिवादी भाप्य किया गया । इसमे अहिंसा सत्य शील ईमानदारी आदि सदाचार के विश्व की धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक आदि सभी समस्याओ का हल करने का प्रयत्न किया हो नानारूप है इसलिये सत्य को अलग कहने की गया है। आवश्यकता नही है । अथवा अगर कोई सत्य की व्यापक व्याख्या करके सब सदाचार को उसमे यद्यपि इसमे साम्यवाद या समाजवाद का शामिल करना चाहता है तो कोई विरोध नहीं है पर कुछ विरोध किया गया है परन्तु गौर से देखने से साधारण जनता की दृष्टि मे सदाचार शब्द मालूम होगा कि यह समाजवाद की आत्मा का व्यापक है। भारतीय अवतार हैं बल्कि भारत से ही ग्वास बहादुरी को पूज्यता की निशानी मानना सम्बन्ध रखनेवाली एक दो बातो को छोडकर तो ठीक नहीं । बहादुरी का उपयोग जनसेवा के लिये इसका रूप विश्व के लिये उपयोगी है और ऐसा जितने अश मे होगा उतने ही अश मे पूज्यता है जो साम्यवाद की अपेक्षा अधिक समय तक आजायगी सो यह बात धन विद्या कला आदि के स्थिर रह सके। यह पूँजीवादियो को तो असह्य विषय मे भी है । होगा पर पंजीपतियो को असह्य न होगा इसलिये इसका यह मतलब नहीं है कि इन गुणो व्यवहार मे भी जल्दी आसकता है और इसको की अवहेलना होना चाहिये । आवश्यकता सब की व्यवहार मे लाने का क्रम भी बनाया जा सकता है। है पर पूज्यता इनसे तभी मानी जा सकती है जब हा, इसके लिये सगठन करने की आवश्यकता है ।
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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