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________________ संदेश आठवाँ विवाह न करले तब तक उसके भरण पोषण का भार उसी पुरुष पर रहे जिसने तलाक दिया है । पर इसका निर्णय न्यायालय करे । ५- बहुपत्नीत्व की प्रथा जाना चाहिये । अगर किसी कारण से अपवाद रूप मे रहे तो उसके साथ अपवाद रूप में बहुपतित्व की प्रथा भी रहे अथवा नियोग का सुभीता मिले । जैसे कोई पुरुष सन्तान के लिये दूसरी गाढी करना चाहता है तो करे, परन्तु उसकी पत्नी को सन्तान के लिये नियोग करने का सुभीता हो। अच्छी बात यही है कि न बहुपतित्व रहे न बहुपत्नीत्व । ६-शिष्टाचार मे नरनारी का समान दर्जा हो । योग्यताभेद से जो शिष्टाचार के रूपमे परिवर्तन होता है वह बात दूसरी है । astast बातो मे यो कानून या लोकनीति कुछ अकुश लगा सकते है पर घरू बातो मे परस्पर का त्याग और प्रेम ही बडा कानून है । इसके बिना कोई भी कानून नर नारी की समस्या को नहीं सुलझा सकता | हा, वातावरण ऐसा अवश्य होना चाहिये कि जो पुरुष को उद्दड बनाने से रोके । नारीको मार बैठना, अमर्याद गालियाँ बकने लगना, सब के सामने तीव्र अपमान कर बैठना आदि वाते' अत्यन्त निंद्य समझी जाना चाहिये । इन वातो पर भी कानून नियन्त्रण नहीं कर सकता पर लोकनीति नियन्त्रण कर सकती है । पुरुष पशुवल मे अधिक है इसलिये उसके अधिकार अधिक हों और नारी निर्बल है इसलिये उसके अधिकार कम हो यह दृष्टि जाना चाहिये । [ ४१ जरूरत होने पर नारी को बाहर के काम भी करना चाहिये और पुरुष को भीतर के । नर नारी समता रहे और विषमता का समन्वय रहे यही निरतिवाद की दृष्टि है । सन्देश आठवॉ इन सब समताओ के होने पर भी नारीका कार्यक्षेत्र घर के भीतर है और पुरुष का बाहर हिन्दू, मुसलमान, जैन, ईसाई, पारसी आदि के दायभाग के नियम जुदे जुदे न रहे । इस विपय मे नर नारी के अधिकारो की समानता जितनी अधिक सम्भव और व्यवहारोचित है उसी के अनुसार कानून बनाया जाय जो सभी सम्प्रदाय और जातियो के व्यक्तियो पर एकसा लागू हो । इसकी रूपरेखा शास्त्रो के आधार से नही किन्तु लोकहित ओर गक्यसमानाधिकार के आधार से बनना चाहिये । भाष्य- फौजदारी कानून सबको एक सरखि हैं दीवानी कानून सबको एक सरीखे है फिर जुढे जुदे शास्त्रो मे दायभाग के कानून जुढे जुढे दायभाग का कानून सब को जुदा जुढा क्यों हो ? मिलते हैं उसका कारण यह है कि वे एक ही समय और एक ही जगह के बने हुए नहीं हैं । शास्त्रो ने उस समय के कानून मे फेरफार करके सुधार अवश्य किया और उससे जन-समाज को लाभ पहुँचाया पर आज जब कि सब एक जगह आ गये है तब उन सबसे अच्छा दायभाग कानून वयो न बनाया जाय ? एक हिन्दू स्त्री सिर्फ इसी - लिये मनुष्योचित अधिकारों से वञ्चित रहे कि वह हिन्दू कुटुम्ब मे पैदा हुई इस प्रकार का अन्याय कदापि न रहना चाहिये । उत्तराधिकारित्व का प्रश्न किसी एक सम्प्रदाय का या जातिका प्रश्न नहीं है वह मनुष्यमात्र का प्रश्न है इसलिये मनुष्योचित दृष्टि से ही उसका विचार करना चाहिये । इसमें किसी की
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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