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________________ ४० ] निरतिवाद भाष्य-इन धर्मग्रथो ने एक जमाने मे लोगो संदेश सातवाँ की बहुत भलाई की है और इनके भीतर ऐसे नारी, नारी होने के कारण ही किसी अविनैतिक उपदेश भरे है जो आज भी हितकारी कार से वञ्चित न रक्खी जाय । शारीरिक भेट है । पर उनमे ऐसी वाते भी है जो उसी समय के कारण कार्यक्षेत्र का भेढ व्यवहार मे रहे कानून के लिये उपयोगी थीं । आज अगर उनका उप मे नही । दायभाग मे नारी का अधिकार योग किया जाय तो दूसरो के अधिकारो मे बाधा वढाया जाय । विधवाविवाह विधुरविवाह के आ सकती है। देशकाल को देखकर विवि समान समझा जाय । बहुपत्नीत्व की प्रथा कानून विधान बनाना चाहिये । आजके युग मे । से वन्द कर दी जाय । आज की परिस्थिति देखकर विवान बनाना भाष्य-नर-नारी-सम्बन्ध एक ऐसी विकट चाहिये । सैकडो हजारो वर्ष पुराने विवानो मे से तो कुछ चुने हुए विधान ही काम मे लाना चाहिये । समस्या है जो कानून के बल से सुलझ नही सकती । खासकर घर क भीतर तो यह और भी ___ अपने अपने धर्मग्रथोपर जोर दिया जाय जटिल है । फिर भी इसकी रूप रेखा पर कुछ और अक्षरशः पालन किया जाय तो सत्यासत्य अंकुश लगाये जा सकते है । खासकर सामाजिक का निर्णय हो ही न सके क्योकि वस्तुस्थिति जीवन मे तो इसको बहुत स्पष्ट किया जा सकता को कोई न देखे अपनी अपनी बात है । निम्नलिखित बातो पर ध्यान रखने की आवपकड कर सब रह जॉय । हमे यह याद रखना श्यकता है। चाहिये कि धर्म शास्त्र अपने नैतिक विकास के लिये हैं दूसरो के ऊपर अपना बोझ लादने के १-धारासभाएँ म्युनिसपल आदि सस्थाओ मे, लिये नहीं। शिक्षा विभाग तथा अन्य प्रवन्ध विभाग मे भी नारी मे भेदभाव न रक्खा जाय । अध्यक्ष पद इस सन्देश पर भी कुछ सूचनाएँ आई हैएक सूचना यह है कि इन ग्रथो की पुन वगैरह भी स्त्रियों को दिये जॉय । हा, योग्यता का र्रचना की जाय । इस बात पर मेरा ध्यान बहुत विचार तो सर्वत्र आवश्यक है । दिन से है। बल्कि सत्यसमाज के पहिल मैने २-आर्थिक अधिकार 'नारीका अविकार' यही काम शुरू किया था। बल्कि इन धर्मग्रथो इस शीर्पक के वर्णन के अनुसार रक्खा जाय । के सार लिखे जाना चाहिये और इन पर समयो- ३-विववाविवाह का अविकार पूरा हो और पयोगी समभावी टिप्पणियाँ भी लिखी जानी इससे उसके स्त्रीवनमे वाधा न आव। . चाहिये । टिप्पणियाँ ऐसी हो जिससे लोगो की ४ तलाक के रिवाज को उत्तेजन न दिया शास्त्रान्धता नष्ट हो जाय और विवेक या विचार जाय परन्तु कुछ ऐसी परिस्थितियो का निर्देश किया शक्ति जाग्रत हो। जाय जब नारी तलाक दे सके । नारीको तलाक शास्त्रो के विषय मे न तो अन्धश्रद्धा रक्खी देने की सुविधा जितनी मिले पुरुष को उसमे जाय न उनका सर्वथा बहिष्कार किया जाय। कुछ कम मिले अथवा यह नियम और जोड दिया यह निरतिवाद है। जाय कि परित्यक्त नारी जब तक अपना दूसरा
SR No.010828
Book TitleNirtivad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDarbarilal Satyabhakta
PublisherSatya Sandesh Karyalay
Publication Year
Total Pages66
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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