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________________ ७. गभवति श्रपंचेदिति रिक्खजोरिणप्राणं तेरसविहे पोगे पण्णत्ते, तं जहासच्चमरणपओगे मोसमरणपश्रोगे सच्चामोस मरणपश्रोगे श्रसच्चामोसमणपश्रोगे सच्चवइपोगे मोसवइपोगे सच्चामोसवइपोगे असच्चामोसवइपोगे श्रोरालि सरीरकायपोगे श्रोरालि - मोससरीरकायपोगे वेडन्विन सरीरकायपोगे वेउविश्रमीससरीरकायपोगे कम्मसरीरकायपोगे । ८. सूरमंडले जोयणेणं तेरसह एगसद्विभागे हिं जोयरणस्स ऊणे पण्णत्ते । ६. इमोसे णं रयणप्पहाए पुढवीए प्रत्येगइयाणं नेरइयाणं तेरस पविमाई ठिई पण्णत्ता । १०. पंचमाए णं पुढवीए श्रत्येगइयाणं नेरइयाणं तेरस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । ११. असुरकुमाराणं देवाणं श्रत्येगइयाणं तेरस पलिश्रोवमाई ठिई' पण्णत्ता । प्रत्थे - गइयाणं देवाणं तेरस पलि श्रीमाई ठिई पण्णत्ता । १२. सोहम्मीसाणेसु कप्पे ' १३. लंतए कप्पे प्रत्येगइयाणं देवानं तेरस सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । समवाय-सुत्तं ૪૬ ७. गर्भोपकान्तिक / गर्भज पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीवों के प्रयोग / परिस्पंदन तेरह प्रकार के प्रज्ञप्त हैं । जैसे किसत्यमनः प्रयोग, मृपामनः प्रयोग, सत्यमृपामनः प्रयोग, असत्यामृपामनः प्रयोग, सत्यवचनप्रयोग, मृषावचनप्रयोग, सत्यमृषावचनप्रयोग, असत्यामृपावचनप्रयोग, औदारिकशरीरकायप्रयोग, श्रदारिकमिश्रशरीरकायप्रयोग, वैक्रियशरीरकायप्रयोग, वैक्रियमिश्रशरीरकायप्रयोग कार्मणशरीरायप्रयोग | और ८. सूर्यमण्डल योजन के इकसठ भागों में से तेरह न्यून अर्थात् योजन का अड़तालीसवाँ भाग प्रज्ञप्त है । C. इस रत्नप्रभा पृथिवी पर कुछेक नैरयिकों की तेरह पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । १०. पाँचवीं पृथिवी [ धूमप्रभा ] पर कुछेक नैरयिकों की तेरह पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । ११. कुछेक असुरकुमार देवों की तेरह पत्योपम स्थिति प्रज्ञप्त हैं । १२. सौधर्म - ईशान कल्प में कुछेक देवों की तेरह पत्योपम स्थिति प्रजप्त है । १३. लान्तक कल्प में कुछेक देवों की तेरह सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है । समवाय- १३
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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