SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३. सव्वट्टे जहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णता । २३. सर्वार्थसिद्ध की जघन्यतः और उत्कृष्टतः तैतीस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है। २४. फतिणं भंते ! सरीरा पण्णता? गोयमा! पंच सरीरा पण्णता, तं जहापोरालिए वेउन्विए आहारए तेयए कम्मए । २५. मोरालियसरीरेणं भंते ! कइ. विहे पण्णते ? गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहाएगिदियोरालियसरीरे जाव गम्भवक्कंतियमणुस्स-पंचिदियपोरालियसरीरे य। २४. भंते ! शरीर कितने प्रज्ञप्त हैं ? गौतम ! शरीर पांच प्रज्ञप्त हैंजैसे कि औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तंजस और कार्मक। २५. भंते ! औदारिक शरीर कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ? गौतम ! पांच प्रकार का प्रज्ञप्त है । जैसे किएकेन्द्रिय-प्रौदारिकशरीर यावत गर्भोपक्रान्तिक-मनुष्य - पञ्चेन्द्रिय औदारिक-शरीर । २६. भंते ! औदारिक शरीर की शरीर अवगाहना कितनी बड़ी प्रज्ञप्त २६. पोरालियसरीरस्स णं भंते ! केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णता ? गोयमा ! जहणेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं उक्कोसेणं साइरेगं जोयणसहस्सं । गौतम ! जघन्यतः अंगुल का असंख्यातवां भाग और उत्कृष्टतः हजार योजन से कुछ अधिक । २७. एवं जहा प्रोगाहणासंठाणे पोरा लियपमाण तहा निरवसेसं । .एवं जाव मणुस्सेत्ति उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई। २७. इस प्रकार जैसे 'अवगाहना संस्थान' में औदारिक प्रमाण कहा गया है, वैसा ही निरवशेष/अन्यत्र ज्ञातव्य है। इस प्रकार यावत् मनुष्य की उत्कृष्ट अवगाहना तीन गाउ की है। २८. कइविहे गं भंते ! वेउस्विय सरीरे पण्णते? २८. भंते ! वैक्रिय-शरीर : कितने प्रकार का प्रज्ञप्त है ? समवाय-सुत्तं २६७ समवाय प्रकीर्ण
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy