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________________ सयमेगं उवरिमए, पंचेव अणुत्तरविमाणा ॥ निन्यान्वे, मध्यम में एक सौ सात, उपरीतन में सौ विमानावास हैं। अनुत्तर देवलोक के पांच विमानावास हैं। १६. नेरइयारणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा ! जहण्णणं दस वाससहस्साई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। १६. मंते ! नैरयिकों की कितने काल की स्थिति प्रज्ञप्त है ? गौतम ! जघन्यतः दस हजार वर्ष और उत्कृष्टतः तैंतीस सागरोपम स्थिति प्रजप्त है। २०. अपज्जत्तगाणं भंते ! नेरइयारणं केवइयं कालं ठिई पण्णता? २०. भंते ! अपर्याप्तक नैरयिकों की कितने काल की स्थिति प्रज्ञप्त गोयमा ! जहणणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहत्तं । गौतम ! जघन्यतः अन्तमुहूर्त और उत्कृष्टतः भी अन्तर्मुहूर्त है । २१. पज्जत्तगाणं मंते ! नेरइयाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता ? २१. भंते ! पर्याप्तक नैरयिकों की कितने काल की स्थिति प्रज्ञप्त गोयमा ! जहणणं दस वाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई । गौतम ! जघन्यतः दस हजार वर्ष में अन्तर्मुहुर्त न्यून और उत्कृष्टत: तैतीस सागरोपम में अन्तर्मुहूर्त न्यून। २२. इमोसे णं रयणप्पहाए पुढवीए, एवं जाव विजय-जयंत-जयंतअपराजियाणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णता? गोयमा! जहणणं वत्तीसं सागरोयमाई उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई। २२. भन्ते ! इस रत्नप्रभा पृथ्वी की यावत् विजय, वैजयन्त, जयंत, और अपराजित देवों की कितने काल की स्थिति प्रज्ञप्त है ? गौतम ! जघन्यतः बत्तीस सागरोपम और उत्कृष्टतः तेंतीस मागगेपम । समवाय-मृतं समवाय-प्रकीर्ण
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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