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________________ ३२. असुरकुमाराणं देवारणं प्रत्येगइयाणं एगं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता । ३३. अतुरकुमाराणं देवागं उक्कोसेरगं एवं साहियं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता । ३४. असुरकुमारिदवज्जियाणं भोमिज्जारणं देवारणं प्रत्येगइया एगं पलिवमं ठिई पण्णत्ता । ३५. असंखेज्जवासाज्यसण्णिपचदियतिरिक्खजोगिया प्रत्येगइ यारणं एगं पलिश्रोवमं ठिई पण्णत्ता । ३६. श्रसंखेज्जवासाउयगन्भववकंतिय समिया प्रत्येगइयार एगं पलिप्रोवमं ठिई पण्णत्ता । ३७. वारणमंतराणं देवारणं उक्कोसेणं एवं पलिश्रवणं ठिई पण्णत्ता । देवारणं उक्कोसेरगं एगं पलिश्रोवमं वाससयसहस्समभ हियं ठिई पण्णत्ता । ३८. जोइसियारणं ३६. सोहम्मे कप्पे देवागं जहण्णेणं एवं पविमं ठिई पण्णत्ता । ४०. सोहम्मे कप्पे देवारणं श्रत्येगइयारणं एवं सागरोवमं ठिई पण्णत्ता । समवाय-सुतं ६ ३२. कुछेक ग्रमुरकुमार देवों की एक पत्योपम स्थिति प्रज्ञप्त 1 ३३. अमुरकुमार देवों को उत्कृष्टतः स्थिति एक सागरोपम से अधिक प्रज्ञप्त है । ३४. सुरकुमारेन्द्र को छोड़कर कुछेक भौमिज्ज / भवनवामी देवों को एक पत्योपम स्थिति प्रज्ञप्त ' ३५. कुछेक असंख्य वर्षायु संजी / समनस्क पंचेन्द्रिय तिर्यक् योनिक जीवों की एक पत्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । ३६. कुछेक असंख्य वर्षायु गर्यो पक्रान्तिक गर्भज संजी / समनस्क मनुष्यों की एक पत्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । ३७. वान-व्यन्तर देवों की उत्कृष्टतः एक पत्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । ३८. ज्योतिष्क देवों की उत्कृष्टतः एक पत्यापम से एक शत- सहस्र / एक लाख वर्प अधिक प्रज्ञप्त है । ३६. सौधर्मकल्प देवों की जघन्यतः / न्यूनतः एक पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । ४०. कुछेक सौधर्मकल्प देवों की एक सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है । समवाय-१
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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