SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 258
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ एए अण्णे य एवमाइग्रत्था वित्यरेण । पं प्रणुत्तरोववाइयदसासु परिता वायणा संखेज्जा अणुश्रीगदारा संखेज्जाश्रो पडिवतोत्रो संखेज्जा वेढा संखेज्जा सिलोगा संखेज्जानो निज्जुतो सज्जा संगहणोश्रो । से णं गट्टयाए नवमे नंगे सुयक्बंधा दस अभयणा तिणि वग्गा दस उद्देसणकाला दस समुद्दे सणकाला सखेज्जाई पयसहस्साइं पयग्गेणं, संखेज्जाणि, प्रक्खराणि अांता गमा, श्रणंता पज्जवा । परित्ता तसा श्रणंता थावरा सासया कडा रिगवद्धा णिकाइया जिणपण्णत्ता भावा श्राघविज्जति पण्णविज्जति परुविज्जंति दंसिज्जंति निदंसिज्जंति उवदंसिज्जति । से एवं आया एवं णाया एवं विष्णाया एवं चररण कर रगश्राघविज्जति परुवणया पण्णविज्जति परुविज्जति दंसिज्जति निदंसिज्जति उवदसिज्जति । सेतं प्रणुत्तरोववाइयदसाश्री । समवाय-सुतं २३६ ये तथा इसी प्रकार से अन्य अर्थ इसमें विस्तार से हैं | अनुत्तरोपपातिक दशा की वाचनाएँ परिमित हैं, ग्रनुयोगद्वार संख्येय हैं, प्रतिपत्तियां संख्येय हैं, वेष्टन संख्येय हैं, श्लोक संख्येय हैं, निर्यु - क्तियां सँख्येय हैं, संग्रहणियां संख्य हैं । यह ग्रंग की अपेक्षा से नौवां अंग है । इसके एक श्रुतस्कन्ध, दस अध्ययन, तीन वर्ग, दस उद्देशनकाल, दस समुद्देशन-काल, पदप्रमारण से संख्येय शत सहस्र / लाख पद, संख्येय अक्षर, अनन्त गम और अनन्त पर्याय हैं । इसमें परिमित त्रस जीवों, अनन्त स्थावर जीवों तथा शाश्वत, कृत, निवद्ध और निकाचित जिनप्रज्ञप्त भावों का आख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है, दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है । यह श्रात्मा है, जाता है, विज्ञाता है, इस प्रकार चरण- कररण-प्रपरणा का इसमें ग्राख्यान किया गया है, प्रज्ञापन किया गया है, प्ररूपण किया गया है. दर्शन किया गया है, निदर्शन किया गया है, उपदर्शन किया गया है । यह है वह ग्रनुत्तरोपपातिकदशा । समवाय-द्वादशांग
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy