SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 236
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७१. सहस्रार कल्प में छह हजार विमान प्रज्ञप्त हैं। ७२. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के रत्नकांड के उपरितन चरमान्त से पुलककांड के अधस्तन चरमान्त का अवाघतः अन्तर सात हजार योजन प्रज्ञप्त ७१. सहस्सारे णं कप्पे छ विमाणा वाससहस्सा पण्णत्ता। ७२. इमोसे णं रयणप्पहाए पुढवीए रयणस्स कंडस्स उवरिल्लामो चरिमंतानो पुलगस्स कंडस्स हेदिल्ले चरिमंते, एस णं सत्त जोयणसहस्साई अवाहाए अंतरे पण्णत्ते । ७३. हरिवास-रम्मया णं वासा अट्ट अट्ठ जोयणसहस्साई साइरेगाई वित्थरेणं पण्णत्ता। ७४. दाहिणड्ढमरहस्स णं जीवा पाईणपडीणायया दुहरो समुह पुट्ठा नव जोयरणसहस्साई आयामेणं पण्णत्ता। ७३. हरिवर्प और रम्यकवर्ष साधिक आठ-आठ हजार योजन विस्तार से प्रज्ञप्त हैं। ७५. मंदरे णं पव्वए घरणितले दस जोयणसहस्साई विखंभेरणं पण्णत्ते। ७४. दक्षिणार्थ भरत की जीवा पूर्व पश्चिम दिशा की दोनों ओर से समुद्र का स्पर्श करती हुई नौ हजार योजन आयामवाली/लम्बी प्रज्ञप्त है। ७५. मन्दर-पर्वत धरणीतल पर दस हजार योजन विष्कम्भक /चौड़ा प्रजप्त है। ७६. जम्बूद्वीप द्वीप एक शत-सहस्र/ लाख योजन आयाम-विष्कम्भक/ विस्तृत प्राप्त है। ७७. लवण समुद्र का दो शत-महस्र | लान्त्र योजन चक्रवाल-विष्कम्भ प्रनप्त है। ७६.जंयूदीवेणं दोवे एग जोयरणसय सहस्सं प्रायामविक्रमेणं पपणत्ता। ७७. लवणे णं समुद्दे दो जोयणसय सहस्साई चपकवालविरमेणं पण्णत । ७८. पामस्म एं अरहनो तिणि सयमाहत्मीग्रो मत्तावीस य महत्माद उयकोसिया साथियामंपा होत्या। ७८. अर्हत् पावं की तीन शत-सहस्र/ लाग्य मत्ताईस हजार धाविकाओं की उत्कृप्ट श्राविकासम्पदा थी। ' समापन समवाय-शतोत्तर
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy