SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 235
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६३. पासस्स णं अरहनो दस अंते वासिसयाई कालगयाइं जाव सव्वदुक्खप्पहीणाई। ६४. पउमद्दह-पुंडरीयदहा य दस दस जोयणसयाई प्रायामेणं पण्णत्ता। ६३. अर्हत् पार्श्व के दश सौ/एक हजार ___ अन्तेवासी कालगत हो, सर्व दुःख मुक्त हुए। ६४. पद्मद्रह और पुण्डरीकद्रह दश-दश सौ/हजार-हजार योजन आयामवाले लम्बे प्रजप्त हैं। ६५. अणुतरोववाइयाणं देवाणं विमाणा एक्कारस जोयणसयाई उड्डं उच्चत्तणं पण्णता। ६५. अनुत्तरोपपातिक देवों के विमान ऊँचाई की दृष्टि से ग्यारह सौ योजन ऊंचे प्रजप्त हैं। ६६. पासस्स णं अरहनो इक्कारस सयाई वेवियाणं होत्था । ६७. महापउम-महापुंडरीयदहाणं दो-दो जोयरणसहस्साइं पाया. मेणं पण्णत्ता। ६६ अर्हत् पावं के वैक्रिय [लब्धि सम्पन्न] साधु ग्यारह सौ थे । ६७ महापद्मद्रह और महापुण्डरीद्रह दो दो हजार योजन आयामवाले/ लम्बे प्रज्ञप्त हैं। ६८. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के वज्रकांड के उपरितन चरमान्त से लोहिताक्षकांड के अधस्तन चरमान्त का अवाधतः अन्तर तीन हजार योजन का प्रज्ञप्त है। ६८. इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए वहरकंउस्स उवरिल्लानो चरिमंतानो लोहियक्खस्स कंडस्स हेडिल्ले चरिमंते, एस णं तिणि जोयणसहस्साई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। ६६. तिगिच्छ-केसरिदहा णं चत्तारि चत्तारि जोयणसहस्साई माया मेणं पण्णत्ता। ७०. धरणितले मंदरस्स एवं पन्च यस्स बहुमज्झदेसमागे रुयगनाभीयो चउविसि पंच-पंच जोयणसहस्साई अबाहाए मंदरपब्वए पण्णत्त । ६६. तिगिच्छद्रह और केसरीद्रह चार चार हजार योजन आयामवाले ) लम्बे प्रज्ञप्त हैं। ___७०. धरणीतल में मन्दर-पर्वत के वहुमध्यदेशभाग में नाभिरुचक प्रदेशों से चारों दिशाओं में अवाधतः अन्तर पांच-पांच हजार योजन प्रज्ञप्त है। समवाय-सुत्तं . २१५ समवाय-शतोनर 'पुत
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy