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________________ ४१. महाहिमवत् कूट के उपरितन चर मान्त से महाहिमवत् वर्षधर पर्वत के समभूतल का अबाधतः अन्तर सात सौ योजन प्रज्ञप्त है। ४१. महाहिमवंतकूडस्स णं उरि- ल्लामो चरिमंतानो महाहिमवंतस्स वासहरपवयस्स समे घरणितले, एस णं सत्त जोयण सयाई अबाहाए अंतरे पण्णत्ते। ४२. एवं रुप्पिकूडस्सवि। ४३. महासुक्क - सहस्सारेसु-दोसु कप्पेसु विमाणा अट्ट-अट्ट जोयणसयाई उड्ड उच्चत्तण जोयणसयाई उड्ढं उच्चत्तण पण्णत्ता। ४२. इसी प्रकार रुक्मीकूट का भी। ४३. महाशुक्र और सहस्रार-इन दो कल्पों में विमान ऊंचाई की दृष्टि से आठ-आठ सौ योजन ऊंचे प्रज्ञप्त ४४. इमोसे णं रयणप्पहाए पुढवीए पढमे कंडे अट्ठसु जोयणसएसु वाणमंतर - भोमेज्ज - विहारा पण्णत्ता। ४५. समरणस्स एं भगवो महा वीरस्स अटुसया अणुत्तरोववाइयाणं देवाणं गइकल्लाणाणं ठिइकल्लाणाणं पागमेसिनहाणं उकोसिया अणुत्तरोववाइसंपया होत्या। ४४. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के प्रथम काण्ड में आठ सौ योजन तक वानव्यन्तर देवों के भौमेय विहार प्रज्ञप्त हैं । ४५. श्रमण भगवान महावीर के अनुत्त रोपपातिक देवों में कल्याणकारी गति करने वाले, कल्याणकारी स्थिति वाले, भविष्य में मोक्ष प्राप्त करने वाले पाठ सौ साधुनों की उत्कृष्ट अनुत्तरोपपातिक सम्पदा थी। ४६. इस रत्नप्रभा पृथ्वी के बहुसम रमणीय भूमि-भाग से आठ सौ योजन पर सूर्य संचार करता है। ४६. इमोसे गं रयणप्पहाए पुढवीए बहसमरणिज्जाम्रो मिनागायो अहि जोयणसएहि सूरिए चारं चरति । ४७. प्ररहनो में प्ररिट्टनेमिस्स अट्ठ मयाई बाईणं सदेवमणुयासुरम्मि तोगम्मि पाए अपराजियारणं उपोसिया वाइसंपया होत्या। ममय-गुनं ४७. अहद अरिष्टनेमि के देव, मनुष्य और अमुरलोफ में होने वाले वाद में अपराजित पाठ सौ माधुनों की उत्कृप्ट वादी-मम्पदा थी। समवाय-शनोत्तर
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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