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________________ ३२. चुल्लहिमवंतकूडस्स णं उवरि ल्लामो चरिमंतानो चुल्लहिमवंतस्स वासहरपन्वयस्स समे धरणितले, एस णं छ जोयणसयाई प्रवाहाए अंतरे पण्णत्ते । ३२. क्षुल्लहिमवत्कूट के उपरितन चर मान्त से क्षुल्लहिमवत् वर्षधर पर्वत के समभूतल का अवाधतः अन्तर छह सौ योजन प्रज्ञप्त है। ३३. एवं सिहरीकूडस्सवि । ३३. इसी प्रकार शिखरीकूट का भी। ३४. पासस्स णं अरहो छ सया वाईणं सदेवमणुयासुरे लोए वाए अपराजिनाणं उक्कोसिया वाइसंपया होत्था। ३४. अर्हत् पार्श्व के देव, मनुष्य और असुरलोक में होने वाले वाद में अपराजित छह सौ वादियों की उत्कृष्ट वादी-सम्पदा थी। ३५. अमिचदे णं कुलगरे छ धणु सयाई उद्धं उच्चत्तणं होत्था। ३६. वासुपुज्जे णं अरहा छहि पुरिस सएहिं सद्धि मुंडे भवित्ता अगारानो अणगारियं पन्वइए । ३७. बभ-लतएसु कप्पेसु विमाणा सत्त-सत्त जोयरणसयाई उड्ढं उच्चत्तणं पण्णत्ता। ३५. कुलकर अभिचन्द्र ऊँचाई की दृष्टि से छह सौ धनुष ऊँचे थे । ३६. अर्हत् वासुपूज्य ने छह सौ पुरुषों के साथ मुंड होकर अगार से अनगार प्रवज्या ली। ३७. ब्रह्म और लान्तक कल्पों में विमान ऊँचाई की दृष्टि से सात-सात सौ योजन ऊँचे प्रज्ञप्त है। ३८. श्रमण भगवान् महावीर के सात सौ केवली थे। ३८. समणस्स णं भगवनो महावीर स्स सत्त जिणसया होत्था। ३६. समणस्स भगवनो महावीरस्स सत्त वेउब्वियसया होत्था। ३६. श्रमण भगनान् महावीर के सात सौ साधु वैक्रिय [लब्धिसम्पन्न] ४०. अरिनेमी णं रहा सत्त वास सयाई देसूणाई केवलपरियागं पाउणित्ता सिद्ध बुद्ध मुत्ते अंतगडे परिणिध्वुडे सध्वदुक्खप्पहोणे। ४०. अर्हत् अरिष्टनेमि सात सौ से कुछ न्यून वर्षो तक केवल-पर्याय पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिवृत तथा सर्व दुःख-मुक्त हुए । समवाय-सूत्तं २११ समवाय--शतोत्तर
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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