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________________ सत्ता उइइमो समवाओ १. मंदरस्स णं पव्वयस्स पञ्चत्थिमिल्लाओ चरिमंताओ गोथुमस्स णं आवासपव्वयस्त पच्चत्थि - मिल्ले चरिमंते, एस णं सत्ताणउई जोयणसहस्साई अवाहाए अंतरे पण्णत्ते । २. एवं चसिपि । ३. अहं कम्मपगडीणं सत्ताणउई उत्तरपगडीओ पण्णत्ताश्रो । ४. हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कट्टी देणाई सत्ताणउई वाससयाई अगारमभावसित्ता मुंडे भविता णं श्रगारानी अणगारिनं पव्वइए । समवाय-सुतं २०० सत्तानवेवां समवाय १. मन्दर पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से गोस्तूप आवास पर्वत के पश्चिमी चरमान्त का प्रवावतः ग्रन्तर सत्तानवे हजार योजन प्रज्ञप्त है । २. इसी प्रकार चारों दिशाओं में भी [ ज्ञातव्य / प्रज्ञप्त है । ] ३. आठों कर्म - प्रकृतियों की उत्तरप्रकृतियां सत्तानवे प्रज्ञप्त हैं । ४. चातुरन्त चक्रवर्ती ने राजा हरिपेरण कुछ कम सत्तानवे सो वर्षो तक अगार-मध्य रहकर, मुंड होकर, अगार से अनगार प्रव्रज्या ली । समवाय-६७
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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