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________________ एगूणरण उइइमो समवाश्रो १. उसमे णं अरहा कोसलिए इमीसे श्रसप्पिणीए ततियाए सुसम - दुसमाए पच्छिमे भागे एगूणउइए श्रद्धमासेहि सेसेहि कालगए जाव सव्वदुक्ख पहीणे । २. समर भगवं महावीरे इमीसे श्रसपिणीए चउत्थीए सुसम - दुसमाए पच्छिमे भागे एगूणण उइए श्रद्धमासहि सेसह कालगए जाव सव्वखपहीणे । ३. हरिसेणे णं राया चाउरंतचक्कचट्टी एगुणणउई वाससयाई महाराया होत्या । ४. संतिस्स णं अरहो एगूणणउई अज्जासाहसी उक्कोसिया प्रजासंपया होत्या । 'समवाय- सुत्तं नवासिवां समवाय १. कोशलिक श्रर्हत् ऋषभ इस अव सर्पिणी के तीसरे सुषम-दुषमा आरे के पश्चिम भाग में, नवासी अर्द्धमास शेष रहने पर कालगत होकर मुक्त हुए । २. श्रमण भगवान् महावीर इस अव सर्पिणी के चौथे - सुषमा - दुपमा आरे के पश्चिम भाग में, नवासी श्रर्द्धमास शेष रहने पर कालगत होकर सर्व दुःख-मुक्त हुए । ३. चातुरन्त चक्रवर्ती राजा हरिषेण नवासी सौ वर्षो तक महाराज रहे थे । ४. अर्हत् शान्ति की नवासी हजार आर्या की उत्कृष्ट प्रर्या सम्पदा थी । १६२ समवाय-८१
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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