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________________ पण्णतरिमो समवाओ पचहत्तरवां समवाय १. सुविहिस्स णं पुप्फदंतस्स परहो पण्णरि जिणसया होत्या। १. अर्हत सुविधि पुष्पदन्त के पचहत्तर सौ केवली थे। २. सोतले णं अरहा पण्णरि पुव सहस्साई प्रगारमज्झावसित्ता मुंडे भवित्ता रणं अगाराम्रो अरणगारिनं पन्वइए। २. अर्हत् शीतल ने पचहत्तर हजार पूर्वो तक अगार-मध्य रहकर, मुड होकर, अगार से अनगार प्रव्रज्या ली। ३. संती वं परहा पण्णतरि वाससहस्साई अगारवासमझावसित्ता मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अरणगारियं पच्वइए। ३. अर्हत् शान्ति ने पचहत्तर हजार वर्षों तक अगार-मध्य रह कर, मुड हो कर, अगार से अनगार प्रव्रज्या ली। समवाय-सुत्तं १७३ समवाय ७५
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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