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________________ तेवत्तरिमो समवायो १. हरिवासरम्मययासियानो णं जीवानो तेवतरि-तेवतरि जोयणसहस्साई नव य एक्कुत्तरे जोयरएसए सत्तरस य एगणवीसदमागे जोयणस्स प्रद्धभाग च। पायामेणं पण्णतायो। तिहत्तरवां समवाय १. हरिवर्प और रम्यक वर्ष की जीवा/ परिधि तेहत्तर-तेहत्तर हजार नौ सौ एक योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से साढ़े सतरह भाग प्रमाण (७३९०११४३ योजन) आयाम की लम्बी प्रज्ञप्त है। २. विजए गं बलदेवे तेवतरि वास सयसहस्साई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्ध युद्ध मुत्ते अंतगडे परिणिध्वुडे सध्यदुरुषप्पहीणे । २. बलदेव विजय तिहत्तर शत-सहस्र | लाख वर्ष की सर्वायु पालकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वत तथा सर्व दुःख-रहित हुए। समवाय-७३ १७१ समवाय-सुत्तं
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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