SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बावत्तरिमो समवाश्रो १. बावर्त्तारं सुवण्णकुमारावास सयसहस्सा पण्णत्ता । २. लवणस्स समुद्दस्स वावर्त्तार नागसाहस्सीश्रो बाहिरियं वेलं धारति । ३. समणे भगवं महावीरे बावर्त्तार वासाई सव्वायं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे मुत्ते अंतगडे परिगिव्वुडे सव्वदुक्ख होणे । ४. थेरे णं श्रयलभाया बावर्त्तार वासाई सव्वाउयं पालइत्ता सिद्धे बुद्धे सुत्ते अंतगडे परिणिन्वडे सव्वदुक्खप्पही । ५. श्रमंतर पुक्खरद्धे णं बावर्त्तार चंदा पभासिसु वा पभार्सेति वा पभासिस्संति वा, बावतर सूरिया तविसु वा तर्वेति वा तविस्संति वा । ६. एगमेगस्स णं रण्णो चाउरंतचक्कवट्टिस्स बावर्त्तार पुरवर: साहसी पण्णत्ता । ७. बावर्त्तारं कलाओ पण्णत्ताओ, तं जहा - १. लेहं, २. गणियं, ३. रूवं, • नटं, ५. गीयं, ६. वाइयं, ४. समवाय-सुतं १६८ बहत्तरवां समवाय १. सुपर्णकुमार देवों के वहत्तर शतसहस्र / लाख आवास प्रज्ञप्त हैं । २. लवरण - समुद्र की बाहरी वेला को वहत्तर हजार नाग धारण करते हैं। ३. श्रमण भगवान् महावीर बहत्तर वर्ष की सर्वायु पाल कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत तथा सर्व दुःखरहित हुए। ४. स्थविर अचल भ्राता वहत्तर वर्ष की सर्वायु पाल कर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अन्तकृत, परिनिर्वृत तथा सर्व दुःखरहित हुए । ५. आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध में बहत्तर चन्द्र प्रभासित हुए थे, प्रभासित होते हैं, प्रभासित होंगे । आभ्यन्तर पुष्करार्द्ध में बहत्तर सूर्य तपे थे, तपते हैं, तपेंगे। ६. प्रत्येक चातुरन्त चक्रवर्ती राजा के बहत्तर हजार उत्तम पुर / नगर प्रज्ञप्त हैं । ७. कलाएँ बहत्तर प्रज्ञप्त हैं, जैसे कि--- १. लेख, २. गणित, ३. रूप, ४. नाट्य, ५. गीत, ६. वाद्य, ७. स्वरगत / स्वर, ८. पुष्करगत / वाद्य समत्राय - ७२
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy