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________________ एक्कसत्तरिमो समवात्रो १. चउत्यस्स णं चंदसंयच्छरस्स हेमंताणं एमफलत्तरीए राइदिएहि ursesafe सव्ववाहिरात्रो मंडलाओ सूरिए घाउट्ठि फरेइ । २. वोरियप्पवायस्स णं एक्कसर्त्तार पाहूटा पण्णत्ता | ३. प्रजिते रणं अरहा एक्कसर्त्तार पुव्वसयसहस्साइं श्रगारमभावसित्ता मुंडे नवित्ता णं श्रगाराश्री श्रगारिश्रं पव्वइए । ४. सगरे णं रामा चाउरतचपकवट्टी एक्कसर्त्तार पुव्यय सहस्साई प्रगारमभावसित्ता मुंडे भवित्ता णं श्रगाराम्रो प्रणगारिश्रं पव्वइए । समवाय-सुतं १६७ इकहत्तरवां समवाय १. चतुर्थ चन्द्र-संवत्सर की हेमन्त ऋतु के इकहत्तर रात-दिन व्यतीत होने पर सूर्य सर्व बाह्यमण्डल से प्रवृति ( दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर गमन) करता है । २. वीर्यप्रवाद के इकहत्तर प्रज्ञप्त हैं । प्राभृत/धिकार ३. श्रर्हत् श्रजित ने इकहत्तर शत- सहस्र / लाय पूर्वो तक श्रगार-मध्य रहकर मुंड होकर, अगार से अनगार प्रव्रज्या ली । ४. चातुरन्त चक्रवर्ती राजा सगर ने इकहत्तर गत सहस्र / लाख पूर्वी तक गार-मध्य रहकर, मुंड होकर, श्रगार से अनगार प्रव्रज्या लो । समवाय-७१
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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