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________________ अट्ठाण्णइमो समवाश्रो १. पढमदोच्च पंचमासु - तिसु पुढवोसु अट्ठावण्णं निरयावाससय सहस्सा पण्णत्ता | २. नाणावरणिज्जस्स वेयणिज्जस्स य------ श्राउयनामअंतराइयल्स एयासि णं पंचहं कम्मपगडीणं अट्ठावण्णं उत्तरपगडीग्रो पण्णताश्रो । ३. गोयूभस्स णं श्रावासपव्वयस्स पच्चत्थिमिल्लाश्रो चरिमंताश्र वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमदेसमाए, एस णं अट्ठावण्णं जोयरणसहस्साइं प्रबाहाए अंतरे पण्णत्ते । ४. एवं दश्रीमासस्स णं केउकस्स संखस्स जूयकस्स दयसीमस्स ईसरस्स | समवाय-सुत्तं ૫૪ अट्ठावनवां समवाय १. पहली, दूसरी एवं पांचवीं - इन तीनों पृथिवियों में अट्ठावन शतसहस्र / लाख नरकावास प्रज्ञप्त हैं । २. ज्ञानावरणीय, वेदनीय, आयुष्य, नाम और अन्तराय - इन पांच कर्मप्रकृतियों की अट्ठावन उत्तरप्रकृतियां प्रज्ञप्त है । ३. गोस्तूप आवास पर्वत के पश्चिमी चरमान्त से वडवामुख महापाताल के बहुमध्यदेशभाग का प्रबाधतः अन्तर अट्ठावन हजार योजन प्रज्ञप्त है । ४. इसी प्रकार दकावभास केतुक का, शंख यूप का और दकसीम का भी [ अन्तर ज्ञातव्य है । ] • समवाय-५८.
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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