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________________ सत्तावरणइमो समवाश्रो १. तिन्हं गरिणपिडगाणं श्रायारचूलियावज्जाणं सत्तावणं श्रयणा पण्णत्ता, तं जहा -- श्रायारे सूयगडे ठाणे | २. गोथूभस्स णं श्रावासपव्वयस्स पुरथिमिल्लाश्रो चरिताश्रो वलयामुहस्स महापायालस्स बहुमज्भसभाए, एस गं सत्तावणं जोयणसहस्साइं प्रबाहाए अंतरे पण्णत्ते । के यस्स य, संखस्स जूयकस्स य दयसीमस्स ईसरस्स य । ३. एवं दत्रोभासस्स ४. मल्लिस णं श्ररहन सत्तावण्णं मणपज्जवनाणिसया होत्था । ५. महाहिमवंतरुप्पीणं वासधरपव्वया जीवाणं धणुपट्टा सत्तावण्णंसत्तावणं जोयणसहस्साइं दोणि य तेणउए जोयणसए दस य एगूणवीसइभाए जोयणस्स परि खेवेणं पण्णत्ता | समवाय-सुतं १५३ सत्तावनवां समवाय १. आचारचूलिका को छोड़ कर तीन गरिपिटकों के सत्तावन अध्ययन हैं, जैसे कि- आचार, सूत्रकृत, स्थान । [ -तीन गणिपिटक ] २. गोस्तूप आवास पर्वत के पूर्वी चरमान्त से वडवामुख महापाताल के वहुमध्यदेशभाग का अवाघतः अन्तर सत्तावन हजार योजन का प्रज्ञप्त है। ३. इसी प्रकार दकभास केतुक का, शंख ग्रूप का और दकसीम ईश्वर का [ अन्तर ज्ञातव्य है । ] ४. अर्हत् मल्ली के सत्तावन सौ मनः पर्यवज्ञानी थे । ५. महाहिमवान और रुक्मोवर्षधर पर्वतों की जीवा के धनुःपृष्ठ का सत्तावन हजार दो सौ तेरानत्रे योजन और एक योजन के उन्नीस भागों में से दश भाग परिमित (५७२९३१) का परिक्षेप (परिधि ) प्रज्ञप्त है । समवाय-५७
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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