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________________ १४. सोहम्मोसाणेसु कप्पेसु देवाणं श्रत्येगइयाणं पणवीसं पलिवमाई ठिई पण्णत्ता । १५. मज्झिम हे द्विम- गेवेज्जाणं देवाणं जहणेणं पणवीसं सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता । १६. जे देवा हेट्टिम-उवरिम- गेवेज्जविमाणेसु देवत्ताए उववण्णा, तेसि णं देवाणं उक्कोसेणं पणवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता । १७. ते णं देवा पणवीसाए श्रद्धमासहि श्राणमंति था पाणमंति वा ऊससंति वा नीससंति वा । १८. तेसि णं देवाणं पणवीसाए वाससहस्सेहि श्राहारट्ठे समुप्पज्जइ । १६. संतेगइया नवसिद्धिया जीवा, जे पणवीसाए भवगाहणेह सिज्झिस्संति बुज्झित्संति मुच्चिस्संति परिनिव्वाइस्संति सव्वदुक्खाणमंतं करिस्सति । समवाय-सुत्तं ६० १४. सौधर्म ईशान कल्प में कुछेक देवों की पच्चीस पत्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है । १५. मध्यम - अघस्तन ग्रैवेयक देवों की जघन्यतः / न्यूनतः पच्चीस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है । १६. जो देव अधोवर्ती एवं ऊर्ध्ववर्ती ग्रैवेयक विमान में देवत्व से उपपन्न हैं, उन देवों की उत्कृष्टतः पच्चीस सागरोपम स्थिति प्रज्ञप्त है । १७. वे देव पच्चीस अर्धमासों / पक्षों में आन / आहार लेते हैं, पान करते हैं, उच्छवास लेते हैं, निःश्वास छोड़ते हैं । १८. उन देवों के पच्चीस हजार वर्षो में आहार की इच्छा समुत्पन्न होती है । १९. कुछेक भव- सिद्धिक जीव हैं, जो पच्चीस भव ग्रहण कर सिद्ध होंगे, बुद्ध होंगे, मुक्त होंगे, परिनिर्वृत होंगे, सर्वदुःखान्त करेंगे । समवाय- २५
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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