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________________ वण्णनामंगंधनाम रसनामं फासनामं तिरियाणुपुग्विनाम अगस्यलहुयनाम उवधायनामं तसनामं बादरनामं अपज्जत्तयनामं पत्तेयसरीरनामं अथिरनामं असुमनाम दुभगनाम अणादेज्जनाम अजसोवित्तिनामं निम्माणंनाम । संहनन नाम, ६. वर्णनाम १०. गन्धनाम, ११. रसनाम, १२. स्पर्शनाम, १३.तियंचानुपूर्वीनाम, १४.अगुरुलघुनाम,१५. उपधातनाम, १६.७सनाम, १७. वादरनाम, १८.अपर्याप्तकनाम, १६. प्रत्येकशरीरनाम, २०. अस्थिनाम, २१. अशुभनाम, २२. दुर्भगनाम, २३. अनादेयनाम, २४.अयश: कीतिनाम और २५.निर्माणनाम । ८. गंगा और सिन्धु महानदियाँ पच्चीस गन्यूति/कोश विस्तृत दो मुहे घटमुख में प्रवेश कर मुक्तावली हार के रूप में प्रपात में गिरती है। ८. गंगासिंधूनो रणं महाणदीयो पणवीसं गाउयाणि पुहुत्तेण दुहनो घटमुह-पवित्तिएणं मुत्तावलिहारसंठिएवं पवातेणं पवति । ६. रत्तारत्तवतीनो णं महाणदीयो पणवीसं गाउयाणि पुहुत्तेणं दुहयो मकरमुह-पवित्तिएणं मुत्तावलिहार-संठिएणं पवातेणं पवति । ६. रक्ता और रक्तवती महानदियां पच्चीस गव्यूति/कोश पृथुल/विस्तृत मकर-मुख की प्रवृति कर मुक्तावली हार के रूप में प्रपात में गिरती हैं। १०. लोगविदुसारस्स णं पुवस्स . पणवीसं वत्थू पण्णता। १०. लोक विन्दुसार पूर्व के वस्तु/अधिकार पच्चीस प्रज्ञप्त है। ११. इमीसे णं रयणप्पहाए पुढवीए प्रत्येगइयाणं नेरइयाणं पणवीसं पलिनोवमाई ठिई पण्णता। ११. इस रत्नप्रभा पृथिवी पर कुछेक नरयिकों की पच्चीस पल्योपम स्थिति प्रज्ञप्त है। १२. अहेसत्तमाए पुढवीए अत्थेगइयाणं नेरइयारणं पणवीसं सागरोवमाई ठिई पण्णत्ता। १२. अघोवर्ती सातवीं पृथिवी [महातम: प्रभा] पर कुछेक नरयिकों को पच्चीस सागरोपम स्थिति प्राप्त है। १३. असुरकुमाराणं देवाणं प्रत्थेगइ- याणं पणवीस पलिमोवमाई ठिई पाणत्ता। १३. कुछेक असुरकुमार देवों की पच्चीस पल्यापम स्थिति प्राप्त है। समवाय-सुतं समवाय-२५
SR No.010827
Book TitleAgam 04 Ang 04 Samvayang Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1990
Total Pages322
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, & Canon
File Size10 MB
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