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________________ ६८ उवासगदसासु [८-२६२-. रिया । तं णं तुमं, देवाणुप्पिया, एयरस ठाणस्स आलोपहि जाव पडिवजाहि " ॥ २६२ ॥ तए णं से महासयए समणोवासए भगवओ गोयमस्त "तह" त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेइ, २त्ता तस्त ठाणस्स आलोएइ जाव अहारिहं च पायच्छित्तं पडिया जइ ॥ २६३॥ . तए णं से भगवं गोयमे महासयगस्स समणोवालयरस अन्तियाओ पडिणिक्खमइ, २ त्ता रायगिह नयरं मज्झमझेणं निगच्छइ, २त्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, २त्ता समणं भगवं महावीरं वन्दइ नमसइ, २त्ता संजमेणं तवसा अप्पाणंभावेमाणे विहर॥२६॥ तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नयाकयाइ रायगिहाओ नयराओ पडिणिक्खमइ, २त्ता पहिया जपवयविहारं विहरइ ॥ २६५॥ तए णं से महासयए समणोवासए वहूहिं सील जाव भावेत्ता वीसं वासाई सलणोवासगपरियायं पाउणित्ता एक्कारस उवासगपडिमाओ सम्म कारण फासित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता साट्ट भत्ताई अणसणाए छेदत्ता आलोइयपडिकन्ते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा लोहम्मे कप्पे अरुणवाडिसए विमाणे देवत्ताए उनवन्ने । चत्तारि पलिओचमाई ठिई । महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ॥ २६६॥ ॥निक्खेयो॥ अट्ठसं महासययज्झयणं समत्तं ॥
SR No.010825
Book TitleUvasagdasao
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages262
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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