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________________ } है | ||४|| विषय के बश परे केई जिन्हों के सँग अर्द्धगी । कोई कामी रसिक नामी न चेले संग दारा है |ब० ॥ ५ ॥ कोई तो चार भुजधारी कोई के चार आनन है । देव कोई सहित शिरका धरसो धरणि भारा है ॥ ● ॥ ६ ॥ सरागी सगुण युत येतो चरित से है प्रगट जाहिर । सुन्यो तू तो सुगुरुमुख से निरागी निर्विकारा है ॥ ब ० ॥ ७॥ सुगुरु श्री मगन चरणन को दास माधव कहे जपी ये ॥ देव देवाधि देवों का निरजन्न निराकारा है ॥ ब० ॥ ८ ॥ इति ॥ ܕ अथ स्थान सुमति संवाद पद राग रसिया की में । अजव गजव की बात कुगुरु मिल कैसो
SR No.010824
Book TitleShrimadvirayanam
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages57
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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