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________________ ( ७४ ) धर्मका कोई क्षेत्र खास नहीं है सभी क्षेत्र, जहाँ अहिंसादि धर्म पाले जा सकते हैं, क्षेत्र हैं। काल भी कोई नहीं है, जब भी चाहे कोई इसे धारण कार सकता है। . तात्पर्य जाति वर्ण, लिंग, अवस्था, क्षेत्र, काल आदि कोई भी धर्म धारण करने में वाधक नहीं हो सकते, सभी धारण कर सकते हैं, किन्तु यदि वाधक हैं, तो केवल अपना प्रमाद हठ या पक्षपात, सो इसे छोड़ देना चाहिए। व्यवहार चारित्र तो प्राणियों को अपने द्रव्य क्षेत्र काल व भावानुसार तथा अपनी शक्ति अनुसार यथा संभव पालना चाहिए, परन्तु श्रद्धा तो ठीक जरूर कर लेना चाहिए, इसमें न तो शरीर को ही कष्ट उठाना पड़ता है और न द्रव्य (धन) भी खर्चना पड़ता है, केवल दिशा का फेर मात्र है, क्योंकि यदि श्रद्धो यथार्थ होगई, दिशा बदल गई अर्थात् संसार दिशा से मोक्ष मार्ग की दिशा प्राप्त होगई तो धीमें या जल्दी चलकर यह जीव कभी भी इच्छित स्थान (मोक्ष) अर्थात् सच्चे सुख को प्राप्त हो सकेगा, अन्यथा नहीं। सो ही श्रीमत्कुन्दकुन्दाचार्य भगवान ने कहा है जं सकई तं कीरई जं च न सक्कई तंच सदहणं । सद्दहमानो जीचो पावई अजरामरं ठाणं ॥ .
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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