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________________ चता आये हैं सभी कुगुरु हैं, उनको कभी भी नतमस्तक न होना चाहिए, भले वे कितने ही लौकिक चमत्कारों की डींग मारें या बतावें भी सही, परन्तु नहीं ठगाना चाहिये । । । - अपने हृदय में श्रद्धा रखिये, यदि पुण्योदय है, तो कोई देवी, देवता, मन्त्र, तन्त्र आदि बिगाड़ नहीं कर सकता, मार नहीं सकता और यदि पापोदय है तो कोई सहायता नहीं कर सकता, बचा नहीं सकता, जैसा कि कार्तिकेय स्वामी ने अनुप्रेक्षी में कहा हैजं जस्स जीम्हदे से जेण विहाणेण जम्हि कालम्हि । णादं जिणेशमियदं जम्मं वा अहव मरणं वा ॥ तं तस्स तम्हि देसे नेण विहाणेण तम्हि कालम्मि । को सक्कइ चालेदु इन्दो वा अहव जिनिन्दो वा ।। अर्थात-जिसका जिस प्रकार जिस क्षेत्र काल में जो कुंछ होना जिनेन्द्र ने जन्म या मरण या लाभ अंलाम आदि जाना है, उसको उसी प्रकार उसी क्षेत्र काल में वैसा ही होगा, उसको इन्द्र या स्वयं जिनेन्द्र भी टाल नहीं सकते ? तो और कौन टाल सकता है ? 'इस लिये अनुकूल और उचित उपायं पौषंधादि करना चाहिए, इन.कल्पित देवों के चक्कर में वा मन्त्रादि के 'चक्कर में पड़ना चाहिए । यद्यपि जैन ओगम में चार निकायके देव, "कल्प (स्वर्ग), वासी, ज्योतिपी: सूर्य चन्द्राग्रह नक्षत्र तारे)
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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