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________________ ( ३८ ), आरती से क्षेत्रपाल की पद्मावती आदि की आरती का घी बढ़जाता है, जिनेन्द्रकी आरती में ५मिनट यदि लगें, तो क्षेत्रपालादि की आरती में १५ मिनट लगते हैं । इत्यादि देव मूढ़ता बढ़ रही है, जैनधर्म में सम्यक्त्व के अंगों में निःकांक्षित नाम का अंग बताया है, अर्थात् किसी प्रकार की लौकिक सिद्धि की इच्छा करके और को तो क्या, परन्तु जिनेन्द्रको भी न पूजना चाहिए, इच्छा रहित होकर ही धर्म साधन करना चाहिये, इच्छा अर्थात् कांक्षा करना सम्यक्त्व का मल दोष है, स्वामी समन्तभद्राचार्य महाराज ने कहा है | "भयाशास्नेहलोभाच्च कुदेवागमलिंगिनाम् । प्रणामं विनयं चैव न कुर्युः शुद्धदृष्टयः ।। र.क. श्रा. अर्थात् भय आशा स्नेह व लोभ आदि लौकिक प्रयोजनों को लेकर किसी भी कुदेव, कुशास्त्र व कुगुरु को प्रणाम यां बिनय भी नहीं करना चाहिए । अतदेव सिवाय अन्य समस्त रागी, द्वेषी संसारी देव कुदेव हैं, राग, द्वेष व मोह ( मिथ्यात्व ) को पोषणे वाले, एकांत कथन करने वाले; जैनागम के सिवाय अन्य समस्त शास्त्र कुशास्त्र हैं, जैनागम से अभिप्राय कुरूंदकुदाचार्य, पूज्यपादाचार्य, अकलंकाचार्य, जिनसेनाचार्य, गुणभद्राचार्य, नेमिचन्द्र सि० च० भूतवली, पुष्पवली, आदि पूज्य ऋषियों कृत प्रन्थों से है न कि भट्टारकों द्वारा गढ़ंत त्रिवर्णनाचार, चर्चासागर, सूर्यप्रकाश, दानविचारादि और निर्मन्थ कम से कम २८ मूल गुण धारी दिगम्बर जैन साधु, जो सर्व प्रकार से उद्दिष्ट भोजन और वस्तिका के त्यागी और निरन्तर ज्ञान ध्यान संयम तप में मग्न रहते हैं, के सिवाय अन्य भेपो जैसा पहिले
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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