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________________ ( २४ } कमंडलु शास्त्रादि उपकरणों की बोली (नीलाम ) बुलवाकर धन संग्रह करते हैं, निरन्नां गृही नर नारियों के सहवास में - बस्तियों में रहते हैं, लोगों के जय पराजय पर हर्ष विपाद करते हैं, शिथिलाचार का पोषण करते हैं, अमुक २ पक्षों का समर्थन और अमुक २ का विरोध किया करते हैं, गृहस्थों की सभाओं व जुलूसों में जाते हैं घंटो जन समुदाय के बीच में बैठकर अपनी पूजा स्तुति कराते हैं, लोगों को बलात् ( जबरन ) प्रतिज्ञाएं कराते हैं जो वे शर्मा-शर्मी लेकर भंग कर देते हैं, किसी की चूड़ियां फुड़वाते, किसी की नथनी उदरवाते, किसी का पर्दा छुड़वाते, किसी का मन्दिर बन्द करवाते, किसी का नाति वहिष्कार कराते, श्रागम विरुद्ध भक्तों व भक्ति के वश होकर एक स्थान में बहुत समय तक रहते, उपसर्ग व परिषहों से कायर होकर पुलिस व कोर्ट में इजहार देते - इत्यादि क्रिया ' करने वाले, सच्चे जैन साधु नहीं हैं । इनके सिवाय, कोई भस्म नपेटने वाले, नख-केश बढ़ाने वाले, धूनी तापने वाले, मृगचर्म वाघम्बरादि रखने वाले, लोभी कषाय व मँगवा वस्त्र रखने वाले, मन्त्र, यन्त्र, तन्त्र, टोना करने वाले, जोगी जांगड़ा, कनफटा, मुड़चिरा, तेलिया, भबूतिया, आदि नाना प्रकार के मिथ्या भेष रचने वाले भी साधु गुरु नहीं हो सक्त', क्योंकि ये बेचारे भूखे टूटे भिक्षुक, जो घर २ पैसे व भोजन के लिए स्वांग बनाकर दाताओं की स्तुति व निंदा करते फिरते हैं, इन के वैराग्य कहां ? ज्ञान ध्यान तप कहाँ ? ये तो कषायों की ज्वाला में जल रहे हैं, किसी को शाप देते है', 'किसी - को आशीर्वाद कहते हैं, सो बेचारे आप ही जब विषय कषयों के वंश हुए दीन हो रहे हैं तच भौरों का क्या भला करेंगे ? }
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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