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________________ ( २० ) के समय समिति नहीं रहती, इन दोनों में से एक न एक तो रहती ही हैं। जो पांचों इन्द्रियों व अनिन्द्रिय मन को उनके मनोज्ञ अमनोक्ष विषयों में जाने नहीं देते अर्थात् पांचों ज्ञानेन्द्रियों का दमन करते हैं । जोःनित्य सामायिक करते हैं अर्थात् अपने आत्मा में राग द्वषादि परिणति न होने देकर संसार के समस्त पदार्थों में जैसे शत्रु-मित्र, महल:स्मशान, नगर-बनादि सुख दुःख, जीवन-मरण-लाभ-अलाभ आदि में समता, भाव रखने का अभ्यास करते हैं, इसके लिये वे निर्जन स्थानों में कम से कम ६ घड़ी अर्थात् लगभग ढाई २|| घण्टे प्रति दिवस तीन बार तीनों सन्ध्याओं को मध्य में करके तथा मन बचन काय के समस्त विकल्पों व क्रियाओं को रोक कर एकाग्र चित्त होकर अपने शुद्धं बुद्ध यात्मा के चितवन में लगाते हैं। जब चित्त अस्थिर होता देखते हैं, तव अहंत सिद्धादि परमेष्ठियों की स्तुति स्तवन.करते हैं अर्थात उनके गुणों का चिंत्तवन, कीर्तन तथा प्रशंसा करते हैं और फिर शरीर से भी नमस्करादि बन्दना करते हैं। निरन्तर स्वाध्याय स्वात्म चितवन अथवा आगम-अध्यात्म ग्रन्थों का. पठन पाठन करते हैं और आहार विहारादि में अज्ञान व प्रमाद से यदि.कोई दोष लग गया हो, तो उसे. आलोचना, प्रतिक्रमण ( स्वदोष निंदन गर्हण. के द्वारा अथवा प्रायश्चित्त लेकर शुद्ध करते हैं अर्थात् उस दोष से मुक्त होने का प्रयत्न. करते हैं और यथावसर शरीर से भी मोह छोड़ कर आता. पनादि योग धारण अर्थात् कायोत्सर्ग करते हैं। ये छः आव.. श्यक नित्य करते हैं, जो जीवन पर्यन्त न स्नान करते. हैं, न. दांतोन करते हैं, न, लङ्गोटी मात्र तो क्या, किन्तु एक तागा भी बस के नाम का शरीर पर कभी धारण करते हैं। जो
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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