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________________ ( १३ ) सच्चा लक्षण ही मालूम है, तो भला वे उसे कैसे पा सकेंगे ? भले ही वे उसका नाम रटते २ पागल हुए फिरा करें, ऐसे लोग तो जगह २ ठोकरें खाते रहेंगे। हर कोई उनको ठग सकेगा, जो कोई भी उनको कह देगा, कि जिसका तुम नाम लेते हो, वह यही है। बस, वह उससे ही चिपट जायगा, फिर कालान्तर में कोई दूसरा उसे कह देगा, अरे तूने भूल की--यह वह नहीं है, चल मैं तुझे उसे बता दूं । तब वह वहीं दौड़ जायगा तात्पर्य - उसकी सब दौड़, धूप व्यर्थ जायगी, ठीक ऐसी दशा इन संसारी जीवों की है । इन्होंने असली [निराकुलता लक्षण वाला अतीन्द्रिय ] सुख [ जो मोक्ष होने पर होता है ] को नहीं पहिचाना, उसकी श्रद्धा नहीं की ये लक्ष्य भृष्ट हुए, कर्मजन्य इन्द्रिय सुखों [ विषयभोगों] में ही सुख समझ रहे हैं, इन्हीं के लिए इनके सारे प्रयत्न हो रहे हैं, जब कभी इनको अपनी इच्छानुसार कुछ किसी अंश में प्राप्त हो जाता है, तब उसमें मग्न होकर [आपको सुखी . समझने लगते हैं और जब नहीं मिलता, तब दुखी हो जाते हैं । ज्यों २ आकुलता बढ़तीं है, त्यों २ दुखी होते जाते हैं और ज्योंर वह घटती है, त्यों २ दुःख भी कम होने लगता है । वास्तव में चाह ही दुख है, कहा है: दोहा - चाह चमारी चूहड़ी, सब नीचन में नीच । था तो पूरण ब्रह्म जो, चाहं न होती बीच ॥ प्रत्यक्ष देखा जाता है, कि बड़े २ करोड़ पती, अरब पती सेठ शाह -- कि जिनके पास सब प्रकार के ऐहिक सुखों की सामग्री देखी जाती है-भी दुखी रहते हैं और एक साधु जिसके पास लंगोट तक भी शरीर ढकने को नहीं है, बेफिकर हुमा,
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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