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________________ ( १२ ) 'सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः' अर्थात-सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र ये तीनों मिलकर मोक्ष का मार्ग होते हैं । अर्थात् इन तीनों की एकता ही मोक्ष मार्ग है। मोक्ष ही प्राणी मात्र का लक्ष्य हो सकता है, क्योंकि. सभी जीव सुख चाहते हैं और सुख निराकुलता अर्थात् सब प्रकार की इच्छाओं तथा तिन सम्बन्धी चिताओं से रहित अव. स्था में होता है और ऐसी निराकुल दशा मोक्ष (सब प्रकारः के कर्म बन्धनों से छूटने पर) में ही हो सकती है, इस लिये यह सिद्ध हुआ, कि सेब का लक्ष्य मोक्ष ही होना चाहिये, परन्तु, संसारी प्राणी अनादि काल से कर्म बन्धन सहित हैं और इस लिये वे दुखी हैं, कभी उनका दुख कम हो जाता है और कभी बढ़ जाता है । इस कारण वे थोड़े दुख को सुख या पुण्य मान लेते हैं और अधिक दुख को दुख या पाप मानते हैं, परन्तु. वास्तव में थोड़ा दुख भी दुःख ही है वह सुख नहीं हो सकता। सुख तो वही है जिसमें किंचित् भी दुःख न हो और जिसमें कुछ भी दुःख है वह सुख नहीं हो सकता, जैसा कि कहा है:दोहा-जिंह उतंग चढ़ फिर पतन, सो उतंग नहिं कूप । - जा सुख अंतर दुख बसे, सो सुख नहिं दुख रूप ॥ परन्तु संसारी प्राणियों ने जब तक अपनी असली अव-. स्था का विचार करके निश्चय नहीं किया है, तब तक वे उसको. नहीं पा सकते, क्योंकि जब वे जिसको ढूढने ( खोजने । जा. रहे हैं और उसको जानते पहिचानते नहीं हैं, न उन्हें उसका.
SR No.010823
Book TitleSubodhi Darpan
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages84
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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