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________________ (७३) के उदय से ऐसा संघर्यण (हड्डी की मिलाप ) हों उसको ऋषभनाराच संघयण नाम कर्म कहते हैं.. . .. ३ नाराच संघयण हड्डियों को मर्कट बंध दोनों तरफ हों किन्तु न पटी हो न कीली हो. ऐसा संघयणं जिस कर्म से हो उसको नाराच संघयण नाम कर्म कहते हैं, ...: ४ अर्द्धनाराच संघयण-एक तरफ हड़ियों का मर्कट बंध हों और दूसरी तरफ केवल कीली हो ऐसा संघयण जिस कर्म से हो उसको अर्द्धनासंच संघयण नाम कर्म कहते हैं. . कीलिप वर्ल्ड इह रिसहो, पट्टोत्र कीलि अावज्ज । उभो मकड़ बंधो नारायं इम मुलिंगे ॥३६॥... ... ... .... ....५ कीलिका संघयण-दो हड्डियों के बीचमें पटा न हो. केवल १. कीली हो जिस कर्म से ऐसा: संघयण हो उसको की: लिं का संघयण कहते हैं। . . ६ सेवा संघयण-केवल २ हड्डिये पास पास लगी हो ऐसे: संघयण का:नाम सेवा संघयण है और जिस ; कमें से ऐसा:संघयण प्राप्त हो उसको सेवा नाम को कहते हैं.:: वैक्रिय शरीर में, आहारक शरीर में, देवता के शरीर में .
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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