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________________ (५५) गइ जाइ तणु उवंगा, बंधन संघायणाणि संघयणा संठाणु वरण गंधरस, फास अणुमुवि विहगगई२४ १४ पिंड प्रकृतियां के नाम '. " .... १ गति, २ जाति, ३ शरीर, ४ उपांग, ५ बंधन, ६ संयातन, ७ संघयण, में संस्थान, ९ वर्ण, १० गंध, ११ रस. १२ स्पर्श, १३ अनुपूर्वी, १४ विहाय गति. ..... इनका स्वरूप आगे समझायेंगे.... पिंड पयडित्ति चउदस, परघा उस्सास प्राय वुज्जो अगुरु लहुतित्थ निमिणो बधाय मिय अपत्तेत्रा प्रथम ( उपरोक्त ) १४ प्रकृतियों के विभाग होते हैं इसलिये वे पिंड प्रकृतियां कही जाती हैं। प्रकृतियों के नाम ... १ पराघात, २ उच्छवास, ३ आतप, ४ उद्योत, ५ अगुरु लघु, ६ तीर्थकर, ७ निर्माण, ८ उपघात । .... इन ८ प्रकृतियों के विभागः नहीं होते हैं इसलिये. इनको प्रत्येक प्रकृतियां कहते हैं।
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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