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________________ (२२) एक साधु को उपाश्रय में काजा लेते समय भाव शुद्धि से अवधिज्ञान हुवा था किंतु जब वो अवधिज्ञान में इन्द्र और इंद्रानी का झगडा देख रहाथा तो उसको हसी आगई जिसस अवधिज्ञान तुरंत चला गया। इस प्रकार और भी ज्ञान में समझ लेना चाहिये. . ज्ञान वृद्धि के इच्छुक को निम्न लिखित बात अवश्य स्मणं रखना चाहिये. ... कालेविणए बहुमाणे, उवहाणे तहय निन्हवणे, वंजण अस्थतदुभए, अहविहो नाण मायारो॥ १ योग्य समय पर पढना २ पढानेवाले का विनय करना ३ पुस्तक ग्रंथादि का बहुमान करना ४ इंद्रियों की उन्मत्तता दूर करनेको यथा शक्ति तपस्या करना, ५ पढानेवाले का जीघन पर्यंत उपकार मानना, ६ उच्चारण में सूत्रों का शुद्ध पढना ७ मूल के साथ ही साथ अर्थ भली प्रकार समझना ८ मूल और अर्थ दोनों को सम्यक् प्रकार से स्मृति में रखना. इस प्रकार ज्ञान के अठावीस, चौदह वा बीस, छ:, दो और एक ऐसे सर्व मिलकर इक्यावन अथवा सत्तावन भेद हुवे. . .. एसि.जं आवरणं पडुच्च चक्खुस्स तं तयावरणं, दंसण चउ पण निद्दा, वित्तिसमं दसणा वरणं ॥४॥
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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