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________________ ( २.१ ) (ग) काल से रुजुमती पल्योपम के श्रसंख्यातवें भागकी aniaat को जानते हैं और विपुलमती उससे कुछ अधिक जानते हैं. (घ) भाव से रुजुमती द्रव्य की चेतावनी के असंख्यात पर्यायों को जानते हैं और विपुलमती कुछ अधिक जानते हैं. केवल' ज्ञान. पीक + केवल ज्ञान में किसी प्रकार के भेद नहीं होते हैं क्योंकि पदार्थों में जितने रुपान्तर होते हैं होगये हैं, और होवेंगे उन सर्व को एक ही समय में एक ही साथ केवलज्ञानी जानते हैं और देखते हैं. ( क ) १. क्षय - आठ कर्मों का जितना अंश में नाश होता है वो उनका क्षय होना कहा जाता है 'क्षय हुवे कर्मों को तायिक कहते हैं । (ख) कर्मों के शांत होने को उपशम कहते हैं. * (ग) क्षयोपशम - कुछ अश में तय हो और कुछ अंश में उपशम हो ' उसको क्षयोपशम कहते हैं । ज्ञानावरणीय कर्म का संपूर्ण क्षय होता है तब केवल " ज्ञान होता है वहां तक चार ज्ञान में क्षयेो पशम जानना चाहिये । क्षयोपशम भाव में प्रमाद हो जाय तो कुछ अश मे ज्ञान में हानि हो जाती है और भाव शुद्धि से अप्रमाद अवस्था में ज्ञान की वृद्धि होती है.
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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