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________________ ३ ईहा-अर्थावग्रह के पश्चात् पदार्थ के गुणादि का जो खयाल आत्मां में होता है उसको ईहा कहते हैं। अर्थावग्रह की तरह उन्हीं ५ इन्द्रियों और छठे मन में ईहा होती है इस.. लिये ईहा के भी वैसे ही ६ भेद समझना चाहिये । . . ४ अपाय-पदार्थों का खयाल हुवे पश्चात् पदार्थों के गुणों में परस्पर क्या भेद है वह अपाय है वह भी ५ इन्द्रियों और छठे मन में होता है इसलिये उसके भी वैसे ही ६ भेद समझना चाहिये। ५ धारणा-आत्मा में सर्व ज्ञान स्थित रहे उसको धारणा कहते हैं वह भी ५ इन्द्रियों और छठे मनमें होती है इसलिये ।' उसके भी वैसे ही ६ भेद जानना चाहिये। . व्यंजन अवग्रह का काल मिश्रगुण स्थान के काल 'जितना है. अर्थावग्रह, ईहा और अपाय इन तीनों का काल अन्तमहर्त के काल जितना है और धारणा का काल सागरोपम के काल जितना है। .. ... स्मृति रहना और पूर्वभवों का ज्ञान होना अर्थात् जाति स्मरण ज्ञान होना भी मतिज्ञान की धारणा का ही भेद है। . मित्र गुण स्थानक-चौदह गुण स्थानों में से तीसरे गुण स्थान का नाम है गाथा दूसरे कर्म अन्य में देखो। . ३ अन्तर्मुहूर्त-४८ मिनिट (मुहूर्त) से कम समय । '३ सागरोपम-असंख्यात वर्षों का काल.। - - - -
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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