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________________ ज्ञान होता है उसको उपरोक्त चार प्रकार के व्यंजन अवग्रह समझना चाहिये।: ::::: : : :: . . - चचुका :व्यंजन अवग्रह नहीं होने का कारण यह है कि चक्षु से पदार्थ का ज्ञान बिना स्पर्श के होता है. आंख में जो अंजन डाला जाता है उस अंजन को आंख नहीं देखती है और जो. अंजन का गुण मालुम होता है वो स्पशैद्रियः का . विषय है इस ही प्रकार मनका भी व्यंज़न अवग्रह नहीं होता कारण कि मन भी शरीर में रहा हुवा ही जानता है मन का पदार्थ से स्पर्श नहीं हुआ करता है और व्यंजन अवग्रह विना 'स्पर्श के नहीं होता है।..:....:.: . अत्थुगह ईहावा, यधारणा करण माणसेहिं छहा । इन अट्ठवीस भेनं, चउंदसहा वीसहा. चसुत्रं ॥५॥..... ... ... .. २ अर्थावग्रह-व्यंजन अवग्रह होने पश्चात् आत्मा में जिस . से पदार्थ का खयाल होता हैं उसको अर्थावग्रह कहते हैं वह पांच इंद्रियें और छठे मन से होता है इसलिये उसके ६ भेद "कहे जाते हैं. १ स्पर्शेन्द्रिय अर्थावग्रह, २ रसनेन्द्रिय अर्थावग्रह, ' ३ घ्राणेन्द्रिय अर्थावग्रह, ४ चक्षुरिन्द्रिय अर्थावग्रह, ५:श्रोत्रेन्द्रिय अर्थावग्रह ६ मननोइन्द्रिय अर्थावग्रह ।
SR No.010822
Book TitleKarm Vipak Pratham Karmgranth
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages131
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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