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________________ २० ण श्री नमस्कारना शिक्षापाउमा मथाळे पंचपरमेष्टिं वाचक पार्थ पद मुकता ए पद मुकनार महाशयने काइ पांच पद वाला साथ के नव पदवाळा साथे लेवादेवा नहोतुं. विश्वमाननीय, पूजनीय पंच उत्कृष्ट वस्तुओ कइ कइ? तो के श्री अरिहंतादि पंचपरमेष्टि, आ वताववा रुपेज ए पंचपरमेष्टि नमस्कार श्री पाठना मथाळ मुकायां छ. नव पद माननाराए आथी आशय फेर कर्तव्य नथी. वीजां चार पद ए पंच पदना महीमाना स्तोत्र रुपेछे, अने आ शिक्षापाठ पग भाषा फेरे ए पंच परमोत्कृष्ट वस्तुओना गुणना गानरुप छे. माटे असंमजस भावे कोइ भाइए काइ विकल्प करवो योग्य नथी. आवा समजफेर घणा वनवा योग्य छे, अने ते अलक्ष करवा घटेछे पण समजफेरथी ग्रहण करनारे बहु संभाळी विचारी चालवू योग्य छ, आशयने उलगाववादी पोताने लाभांतराय थायछे वीजाने पण ए अंतराय पोते निमित थायछे. जेथी आम अणसमजने लइ वेवडा अंतरायनो पोते भागी थायछे माटे आत्महितैषी जिज्ञासु भाइओ-व्हेनोने अमे वीजी आवृत्तिनी प्रस्तावना जोइ ते मुजव मनन पूर्वक, मध्यस्य दृष्टिए आ ग्रंथ फरी फरी वांचवा-विचारवा विनविये छिए. इतिशं० मुंबइ-मांडवी ) ली. क्षमा श्रमण चरण सेवक संवत् १९६२ना अशाढ मनसुख वि. कीरचंद शुकल २ महेता.
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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