SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ झीणा जीवने पण कोइ रीते दुभाववो नहि, एवी जेनी आज्ञाछे, ए श्री वीतराग महावीर देवनोज परम दयामय अविरोधी धर्मछे. आम दयाना मूक्ष्म प्रकारना दृष्टांत रुपे "पुष्प पांखडी ज्यां दुभाय इ." सापेक्ष वचनो नीकळेला छे. तेने कोइ कोइ भाइओए केवा अणसमज रुप अन्य आशयमां सेळभेळ करी दीयेल छे, ते जोतां ग्लानि उपजे छे. वर्तमानमा एक पक्ष एम कहेछे, के श्रीजिनवर देवनी पूजामा पुप्प न वापरत्रां, केमके एथी हिंसा थायछे वीजो सामो पक्ष एम कहेछे के हिंसाना परिणामे पुप्पनो श्रीजिनेंद्र पूजामां उपयोग थतो नथी, पण त्रिलोक पूज्य, त्रण लोकना नाथ एवा वीतराग परमात्मानी जगत्मां रम्य मनोरम थाल्हादक गणाता द्रव्ये करी भावपूर्वक पूजा रुपे पुप्पनो उपयोग थायछे, अने एथी उलटुं हिंसाना वदले भक्ति उष्ट्रासना फलरुप महापूण्य उपार्जन थाय छे, अने परिणामे निर्जरा थायछे. आम वे पक्ष जे पुष्प पूजाना विधि-निधनां पडेलाले तेनो आशय आ वाक्यने आरोपी दीघो; पण पशुम शायछे. "पुण पांखडी ज्यां दुभाय इ." ने आ तकगर साये कांड लेवा देवा नथी. दयानो सूक्ष्म प्रकार वताव पाना हेनुर ए शब्दो काव्यमा आवेला छे; आम ए सापेक्ष छे ए संबंधी आशयांतर कर्तव्य नथी. २. श्री पंचारनेष्टिनां तो नव पदछे. एम एक पक्षमाने छ, ओ भो तो पांच पदन मुकेला छे! अहिया पण पोतानी मानिनताने लइ आशय फेर असंमजस भावे थयो
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy