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________________ तत्त्वाववोध भाग १३. १७७ ए चक्रथी एवी पण आशंका थाय के ज्यारे बने निकट छे सारे शुं वाकीनां त्यागवां ? उत्तरमा एम कहुं छु के जो सर्व त्यागी शकता हो तोत्सागी यो, एटले मोक्षरुपज थशो नहितो हेय, ज्ञेय, उपादेयनो वोध ल्यो, एटले आत्मसिद्धि प्राप्त थशे. शिक्षापाठ ९४. तत्त्वावबोध भाग १३. जे जे हुँ कही गयो ते तेः कइ केवळ जैनकुळथी जन्म पामेला पुरुपने माटे नथी, परंतु सर्वने माटेछे. तेम आपण निःशंक मानजो के हुँ जे कहुं छउं ते अपक्षपाते अने परमार्थ बुद्धियी कहुं छउं. ___ तमने जे धर्मतत्त्व कहेवानुं छे, ते पक्षपात के खार्थबुद्धियी कहेवातुं मने कइ प्रयोजन नथी; पक्षपात के स्वा थी हुँ तमने अधर्मतत्व बोधी अधोगतिने शामाटे साधु ? वारंवार तमने हुँ निर्ग्रथनां वचनामृतो माटे कहुं छउँ, तेर्नु कारण ते वचनामृतो तत्वमा परिपूर्ण छे, ते छे. जिनेश्वरोने एवं कोइपण कारण नहोतुं के ते निमित्ते तेओ मृषा के पक्षपाती बोधे; तेम एओ अज्ञानी नहता, के एथी मृषा वोधाइ जवाय. आशंका करशो के ए अज्ञानी नहोता ए शा उपरथी जणाय? तो तेना उत्तरमां एओना पवित्र सिद्धांतोनां रहस्यने मनन करवान कहं छउं. अने एम जे करशे ते तो पुनः आशंका लेश पण नहीं करे. जैनमतप्रव
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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