SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृष्णानी विचित्रता. दीठी देवताइ त्यारे ताकी शंकराइने ; अहो ! राज्यचंद्र मानो मानो शंकराइ मळी; वधे कृष्णाड़ तोय जाय न मराइने. (२) करोचली पडी डाढी डाचांतणो दाट वळ्यो, काळी केशपी विपे, श्वेतता छवाइ गइ ; संघ, सांभळवुं ने, देख ते मांडी वळ्युं, तेम दांत आवली ते, खरी, के खवाइ गइ. वळी केड वांकी, हाड गयां, अंगरंग गयो, eठवानी आय जतां लाकडी लेवाइ गइ ; अरे ! राज्यचंद्र एम, युवानी हराइ पण, मनयी न तोय रांड, ममता मराइ गइ. ( ३ ) करोडोना करजना, शीरपर डंका वागे, रोगयी रुंघाड़ गयुं, शरीर सुकाइने ; पुरपति पण माये, पीडवाने ताकी रह्यो, पेट तणी चेट पण, शके न पुराइने. पितृ अने परणी ते, मचावे अनेक धंध, पुत्र, पुत्री भाखे खाउं खाउं दुःखदाइने, अरे ! राज्यचंद्र तोय जीव झावा दावा करे, जंजाळ उडाय नहीं राजी तृपनाइने, ९३ १ २ १
SR No.010820
Book TitleMokshmala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1962
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy