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________________ ( ३५८ ) ऋषिमंगलवृत्ति - पूर्वाई. विगेरे सर्वे यादवो जिनेश्वर प्रजुनी पासे श्रावी आदरथी देशनारूप अमृतनुं पान करवा लाग्या. या वखते एक फक्त वासुदेव विना सर्वे दाशार्दोए, रथम विगेरे समुद विजय राजाना पुत्रोए, बहु एवी कृष्णनी स्त्रीयोए अने कोटि कुमारोए वैराग्यश्री प्रभु पासे चारित्र लीधुं. संसारथी वैराग्य पामेली राजीमतीये पण पोताना बंधुवर्गनी रजा लइ अनेक स्त्रीयोनी साधे हर्षथी दीक्षा अंगीकार करी. पी रथनेमि मुनीश्वर पण वृद्धि पामती श्रावने स्थविर मुनिनी पासे सर्व क्रिया करवा लाग्या. तेमज सिद्धांत नलवामां आसक्त थ येली साध्वी राजीमती पण प्रवर्त्तिनी योनी पासे शुक्रिया करवा लागी. दवे को वखते रथनेमि मुनि, कांइ कार्य प्रसंगे बहार जता इता एवामां रस्ते वर्षाद वरसवा लाग्यो एटले सचित्त जलना जयश्री ते महा मुनीश्वर एक गुफामां पेठा था वखते राजीमती पण केटलीक साध्वीयो सहित श्री नेमिनाथ प्रभुने वांदवा माटे आवती हती. पोताना शरीर नपर वर्षादना बांटा परुवा लाग्याथी सर्वे साध्वीयो अपकाय जीवोनुं रक्षण करवा माटे जूदी जूदी गुफानुमां जा रही. राजीमती पण बहु अंधाराने लीधे गुफानी प्रत्ये अंदर रहेला रथनेमिने नहि जाणती बती दैवयोगथी तेज मदा गुफा ग. गुफा अंदर बहु विस्तारवाली होवाथी तेमां पोतानां जीनां थयेलां वस्त्रोने सुकवती तथा सुवर्ण समान नज्वल देहकांतिने विस्तारती राजीमतीने जोइ गुफानी अंदर रहेला, शरीरनी अंदर स्फुरी रहेला पूर्वना रागवाला ने का माथी पीमा पामेला रथनेमि बहु निर्लऊ बनी गया. अनुक्रमे त्यां गुफामां प्रकाश यो एटले राजीमतीये चारित्रने नाश करवामां उत्साहवंत श्रये - ला ते श्रेष्ठ मुनिने दीग एटले लकार्थी नम्र मुखंवाली ते महासती ऊट वस्त्र पहेरी तथा सर्व अंगने संवरी बहार वरसाद वर्षतो होवाथी त्यां गुफामांजनी रही. पठी वृद्धिपामती कला क्रिमाथी व्याकुल थयेला रथनेमि मुनि, पोतानी चतुराइने जस्मीभूत करता बता राजीमतीने या प्रमाणे कहेवा लाग्या. “सौभाग्यना साररूप, सफल अवतारवाली अने श्रेष्ठ मुखवाली हे राजीमती ! त्हारे विषे प्रेम धारण करनारो ते हुं रथनेमि बुं. हे जड़े ! मने जज, पूर्वनी पेठे म्हारी याचनाने वृथा न कर. संतुष्ट मनवाला आपले बन्ने जणा प्रथम मड़ा जोगश्री या युवावस्थाने कृतार्थ करीए अने पती वृक्षवः 1 " L
SR No.010819
Book TitleRushimandal Vrutti Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhvarddhansuri, Harishankar Kalidas Shastri
PublisherJain Vidyashala Ahmedabad
Publication Year1901
Total Pages487
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size37 MB
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